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________________ ज, कुभव काव्य पर परिच्छदः ४ निश्चिन्तता से बचाव 1-अत्यन्त रोष से भी अचेत अवस्था बहुत बुरी है जो कि अहंकार पूर्ण अल्प सन्तोष से उत्पन्न होती है। 2-निश्चिन्तता के भ्रमात्मक विचार कीर्ति का भी नाश करते हैं । जैसे दरिद्रता बुद्धि को कुचल देती है। 3-वैभव असावधान लोगों के लिए नहीं है, ऐसा संसार के सभी विज्ञजनों का निश्चय है। 4-कापुरुष के लिए दुर्गों से क्या लाभ है 1 और असावधान के लिए पर्याप्त सहायक उपायों का क्या उपयोग ? 5-जो पहिले से अपनी रक्षा में प्रमादी रहता है. तब वह अपनी निश्चिन्तता पर पीछे से विलाप करता है, जब कि वह विपत्ति से विस्मित हो जाता है। 6-यदि तुम अपनी सावधानी में हर समय और हरेक प्रकार के आदमियों से रक्षा करने में सुस्ती नहीं करते तो इसके बराबर और क्या बात है। 7-उस मनुष्य के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है जो कि अपने काम में सुरक्षित और सजग रहने का विचार रखता है। 8. राजा को चाहिए कि विद्वानों द्वारा प्रशंसित कार्यो म भापन को परिश्रमपूर्वक जुटा दे । यदि वह उनकी उपेक्षा करता है । दुःख उठाने से कभी भी नहीं बच सकता ।। -जब तुम्हारी आत्मा अहंकार और उत्संक से मोहित होने का हो तब मस्तक में उनका स्मरण रक्खो जो कि लापरवाही और वेसुधधन से नष्ट हो गये हैं। 10-निश्चय ही एक मनुष्य के लिए यह सरल है वह जो कुछ इच्छा करे उसको प्राप्त करले. लेकिन वह अपने उद्देश्य को निरन्तर अपने मस्तिष्क के सामने रखे। ....................... (217..---
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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