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________________ परिच्छेदः 38 मदितत्यता 1...मनुष्य दृढ़प्रतिज्ञ हो जाता है जब भाग्यलक्ष्मी उस पर प्रसन्न होकर कृपा करना चाहती है, परन्तु मनुष्य में शिथिलता आ जाती है जब भाग्यलक्ष्मी उसे छोड़ने को होती है । 2-दुर्भाग्य शक्ति को मन्द कर देता है. परन्तु जब भाग्यलक्ष्मी कृपा दिखाना चाहती हो तो पहिले बुद्धि में विस्फूर्ति कर देती है । 3-ज्ञान और सब प्रकार की चतुराई से क्या लाम ? जब कि भीतर जो आत्मा है उसका ही प्रभाव सर्वोपरि है । 4-जगत मे दो वस्तुएँ हैं, जो एक दूसरे से बिलकुल नहीं मिलती। धन सम्पत्ति एक वस्तु है और साधुता तथा पवित्रता दूसरी वस्तु । 5-जब किसी का भाग्य फिर जाता है तो भलाई भी बुराई में बदल जाती है, पर जब दैव अनुकूल होता है तो बुरे भी अच्छे हो जाते 6-भवितव्यता जिस बात को नहीं चाहती, उसे तुम अत्यन्त चेष्टा करने पर भी रख सकते, और तो वस्तुएँ तुम्हारी हैं, तुम्हारे भाग्य में वदी हैं उन्हें तुम इधर उधर फेंक भी दो, फिर भी वे तुम्हारे पास से नहीं जावेंगी। 7..उस महान शासक (दैव) के बिना करोड़पति भी अपनी सम्पत्ति का किंचित् भी उपभोग नहीं कर सकता । 8-गरीब लोग निस्सन्देह अपने मन को त्याग की ओर झुकाना चाहते हैं, किन्तु भवितव्यता उन्हे उन दुःखों के लिए रख छोडती है जो उन्हें भोगने है । 9-अपना भला देख कर जो मनुष्य प्रसन्न होता है उसे आपत्ति आने पर क्यो दुःखी होना चाहिए ? 10-होनी से बढ़कर बलवान् और कौन है ? क्योंकि जब से मनुष्य उसके फन्दे से छूटने का यत्न करता है तब ही वह आगे बढ़कर उसको पछाड देती है । 185 -- --
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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