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________________ - कुशल काव्य पर परिच्छेदः १६ क्षमा 1-धरती उन लोगों को भी आश्रय देती है कि जो उसे खोदते हैं । इसी तरह तुम मी उन लोगों की बातें सहन करो जो तुम्हें सताते हैं, क्योंकि बड़प्पन इसी में है । 2-दूसरे लोग तुम्हें हानि पहुँचाएं उसके लिये तुम उन्हें क्षमा कर दो, और यदि तुम उसे भुला सको तो यह और भी अच्छा है । -अतिथि सत्कार से विमुख होना ही सबसे बड़ी दरिद्रता है और मूरों की असभ्यता को सह लेना ही सबसे बड़ी वीरता है ।। 4-यदि तुम सदा ही गौरवमय बनना चाहते हो तो सबके प्रति क्षमामय व्यवहार करो । 5-जो पीड़ा देने वालों को बदले में पीड़ा देते हैं बुद्धिमान लोग उनको मान नहीं देते, किन्तु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते हैं वे स्वर्ण के समान बहुमूल्य समझो जाते हैं । 6-बदला लेने का आनन्द तो एक ही दिन होता है, किन्तु क्षमा करने वाले का गौरव सदा स्थिर रहता है । 7-क्षति चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न उठानी पड़ी हो परन्तु बड़प्पन इसी में है कि मनुष्य उसे मन में न लादे और बदला लेने के विचार से दूर रहे | ___8-घमण्ड में चूर होकर जिन्होंने तुम्हें हानि पहुँचाई है उन्हें अपने उच्च वर्ताव से जीत लो । 9-संसार-त्यागी पुरुषों से भी बढ़कर सन्त यह है जो अपनी निन्दा करने वालों की कटु वाणी को सहन कर लेता है । 10-उपवास करके तपश्चर्या करने वाले निस्सन्देह महान हैं. पर उनका स्थान उन लोगों के पश्चात् ही है जो अपनी निन्दा करने वालों को क्षमा कर देते हैं । 141
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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