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________________ - अफ का घर परिच्छेदः 99 कृतज्ञता 1-आभारी बनने की इच्छा से रहित होकर जो दया दिखाई जाती है. स्वर्ग और पृथ्वी दोनों मिलकर भी उसका बदला नहीं चुका सकते। 2-अवसर पर जो उपकार किया जाता है, वह देखने में छोटा भले ही हो, पर जगत में सबसे भारी है। -प्रत्युपकार मिलने की चाह के बिना जो भलाई की जाती है. वह सागर से भी अधिक बड़ी है। 4-किसी से प्राप्त किया हुआ लाभ, राई की तरह छोटा ही क्यों न हो, किन्तु समझदार आदमी की दृष्टि में वह ताइवृक्ष के बराबर है। 5-कृतज्ञता की सीमा. किये हुये उपकार पर अक्लम्बित नहीं है. उसका मूल्य उपकृत व्यक्ति की लायकी पर निर्भर है। 6-महात्माओं की मित्रता की अवहेलना मत करो और उन लोगों का त्याग मत करो जिन्होंने संकट के समय तुम्हारी सहायता की 7-जो किसी को कष्ट से उबारता है, जन्म जन्मान्तर तक उसका नाम कृतज्ञता के साथ लिया जायेगा। 8-उपकार को भूल जाना नीचता है. लेकिन यदि कोई भलाई के बदले बुराई करे तो उसको तुरन्त ही भुला देना बड़प्पन का चिन्ह हानि पहुँचाने वाले का यदि कोई उपकार स्मृत हो आता है तो महा भयंकर व्यथा पहुँचाने वाली भी चोट उसी क्षण भूल जाती है। 10-और सब दोषों से कलंकित मनुष्यों का तो उद्धार हो सकता है, किन्तु अभागे अकृतज्ञ मनुष्य का कभी उद्धार न होगा! 131
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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