SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वदसमिदिदिय रोधो लोचो आवासयमचेलमण्हाणं । खिदिसयणमदतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च 11॥ पंच महाव्रत पंच समिति पंचेन्द्रियरोधलोचषटडावश्यक क्रियादयोऽष्टाविंशति मूलगुणाः उत्तमक्षमामादंवार्जवसत्यशौचसंय-मतपस्न्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि दशलाक्षणिको धर्मः अष्टादश शीलसहस्राणि चतुरशीतिलक्षगुणाः, त्रयोदशविध चारित्रं, द्वादशविध तपश्चेति सकलं सम्पूर्ण अर्हत्सिद्धाचायोपाध्यायसर्वसाधुसाक्षिकं सम्यक्त्वपूर्वक दढ़वत्तं समारूढं ते में भवतु। अर्थात-यह उपरोक्त पाठ तीन बार पढ़कर शिष्य को व्रतों की व्याख्या समझाकर द्रत देखें और शांतिपक्ति का पाठ पढ़ें । ॥ आशीर्वाद श्लोक || धर्मः सर्वसुखकरो हितकरों धर्मबुधाश्चिन्यते । धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं धर्माया तस्मै नमः || धर्मान्नास्त्यपर; सुहृद्भवभूतां धर्मस्य मूलं दया । धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं हे धर्म 1 मां पालय ॥ इति आशी; श्लोकं पठित्वा अंजलिस्थ तंडुलादिकं दात्रे प्रदेयं । अश्रात्- दीक्षा लेनेवाला सजन अपने हाथ में रखे हुए नंदुल नारियल सुपारी पगैरह उपरोक्त आशीर्वादात्मक श्लोक बोलकर दातार को देखें । अथ षोडश संस्कारारोपण अयं सम्यग्दर्शन संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥ अयं सम्यगज्ञान संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥2॥ अयं सम्यक्चारित्र संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥७॥ अयं बाह्याभ्यन्तरतपः संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥4 ।। अयं चतुरंगवीर्य संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥5॥ अयं अष्ट मातृमंडल संस्कार इह मुनो स्फुरतु ॥6॥ अयं शुद्ध्यष्टकोष्टं संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥7॥ अयं अशेष परीघह जय संस्कार इह मुनौ स्फुरतु ॥8॥ अयं त्रियोग संयमनिवृत्तिशीलता संस्करा इह मुनौ स्फुरतु ॥9॥ अयं त्रिकरणा संयमनिवृत्ति शीलता संस्कार इह मुनी स्फुरतु ॥10॥
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy