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________________ परिशिष्ट-2 जिनदीक्षा देने योग्य गुरु एवं श्रमणत्व नाहं भवामि कस्यापि न किंचन ममापरम् । इत्किंचनतोपेतं निष्कषायं जितेन्द्रियम् ॥४॥ नमस्कृत्य गुरुभक्तया जिनमुद्रा-विभूषितम् । जायते श्रमणोऽसङ्गो विधाय व्रत संग्रहम् II III जिनलिंग की धारण करने के लिए जिस गुरु के पास जाना चाहिए उसके गुणों को प्रमुख रूप से बता दिया कि पह गुरु तीन मुख्य गुणों से सम्पन्न हो (1) मैं किसी का नहीं और न दूसरा कोई पर पदार्थ मेरा है । 'अकिंचन भावना' ।(2) कपाय रहित निष्कपायी और (3) इन्द्रियों पर विजय प्राप्त किये हुए जितेन्द्रिय होना चाहिए । ये गुण जिसमें नहीं बह जिनलिंग की दीक्षा देने योग्य नहीं । इन गुणत्रय सम्पन्न गुरु को नमस्कार करके (दीक्षा ग्रहण के भाव को निवेदन करके) गुरु के द्वारा उपदिष्ट व्रतों को ग्रहण करके जिनमुद्रा से विभूषित नि:संग/परिग्रह रहित हुआ वह मुमुक्षु दीक्षित होने वाले का लक्ष्य एक मात्र मोक्ष की इच्छा होना चाहिए ऐसा मुमुक्षु ' श्रमग' होता है । जिनदीक्षा लेने योग्य पुरुष शान्तस्तपः क्षमोऽकुत्सो वर्णेष्वेक तमस्त्रिषु । कल्याणाङ्गो नरोयोग्यो लिङ्गस्य ग्रहणे मत: 1518 ॥ यो, सा, जो शान्त स्वभावी हो, तप करने में समर्थ, दोषरहित, ब्राह्मणादि त्रिवर्ण में से किसी एक वर्ण से संयुक्त, कल्याणस्वरूप सुन्दर सम्पुर्ण अवयव से सम्पन्न है वह जिनलिंग धारण करने योग्य माना है । लोभिक्रोधि विरोधि निर्दयशपन मायाविनां पानिनां । केवल्यागम धर्मसंघ विबुधावर्णानुवादात्मनाम् ॥ मुंचामो वदतांस्वधर्मममलं सध्दर्म विध्वंसिना । चित्र क्लेशकृतां सतां च गुरुभिदेयान दीक्षा क्वचित् 141 || जो लोभी, क्रोधी, धर्मविरोधी, निर्दयता से गाली देने वाला, मायावी, मानी, केवली, आगम, धर्म, संघ एवं देव इन पर दोपारोपण करने वाला, समय आने पर मैं निर्मल धर्म को छोड़ दूंगा इस प्रकार कहने वाला, सद्धर्म का नाशक. एवं मानों के चित्त में क्लेश उत्पन्न करने वाला मनुष्य को गुरुजन कभी भी दीक्षा नहीं देखें ॥ दा. शा. SHARAMMAHIMAMMIMATHMAR PAR 92 T RIA
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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