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________________ ये शसंति नमति साध्विव पुरोभक्त्या भवेयुर्जडाः। पश्चाज्जैना स्त्रिरत्न सहितान्कुर्वत्युपालंभनम् ।। शून्यग्राम निविष्ठ काष्ठनिगल प्रक्षिप्तपादो यथा। शंसन्नद्यनुवन्नमन्करशिरो दैन्यं ब्रुवन्मूढधी॥४२॥ अर्थात जो व्यक्ति सामने साधु जनों को देखकर प्रशंसा करता है नमस्कार करता है एवं पीछे से उन रत्नत्रय धारियों की निंदा करता है वह अज्ञानी जीय हैं। उसको दीनता, भक्ति ठीक उसी तरह है जैसे कोई सूने ग्राम में बन्धन काल में किसी के पैर को फंसाने पर रास्ते चलने वालों को देखकर वह दीनता को धारण करता है. स्तुति प्रशंसा करता है, हाथ जोड़ता है आदि अनेक भाया पूर्ण क्रियाएं करता है इसी प्रकार साधुओं की प्रशंसा सामने कर पीछे से निंदा करने वास्ों की दशा होता है ।४२ ॥ अतः पूर्वाचार्यों का सन्देशसददृष्टि विबुधंदयालु ममलं चारित्र वंतगुरुं । ये कुप्यंति शपन्ति चेतसि सदा प्रद्वेषमाकुर्वते ॥ तेषां संर्वधनं हरंति यदर्घ सज्ज्ञान माहंतितद् ग्रस्तेऽ के तमसा यथा जगदिदं तद्वत्सचित्तो भवेत् ॥४३॥ अर्थात् जो सम्यग्दृष्टि किट्टान, दयालु, निर्मल एवं चारित्रधारी अपने गुरुओं के प्रति क्रोधित होते हैं, उनको गाली देते हैं एवं चित्त में सदा द्वेष करते हैं, उनके संवर्धन को चोर आदि अपहरण करते हैं, एवं उसके ज्ञान को पाप चोर नष्ट करते हैं। जिस प्रकार सूर्य के राहु ग्रस्त होने पर यह लोक अंधकार से आवृत्त होता है ।।४३ ॥ इस प्रकार यह नवीन प्रतिष्ठापित आचार्य गुरु, प्राण, कुल आदि की निन्दा नहीं करता हुआ दीक्षा विधा आदि तथा धर्म को वस्तु एवं जिनागम मय सम्पूर्ण ग्रन्थ शास्त्रों का पूर्णतः अध्ययन पठन करता है तो सर्वत्र संघ, गण भी उस आचार्य के प्रति रुष्ट कुपित नहीं होता, निन्दा नहीं करता बल्कि उसको सहाय्य प्रदान करता है । वंदण पमुहं सव्वं जहाकम करिए परं णिच्च । एसो होई विसेसो, तस्स करे सव्व संयोय ॥६॥ अन्वयार्थ-(वंदण पमुह) वन्दना प्रमुख (सणं करिए) सम्पूर्ण क्रियाएं (जहाफर्म) यथाक्रम/क्रमपूर्वक (साधु)। (परं) उत्तम रूप से (पिच्चं) नित्य ही (करिए)करते हैं। (एसो) यह उसकी (विसेसोहोइ) विशेष है कि (सव्यसंघोय) सम्पूर्ण संघ भी (तस्स करे) उसके आधीन/आश्रित होता है ॥७६ ॥ VAHIRAINRITIRTHIANRAISAL 78 VIDIOINTS IIIIIIIIIIAN MINIMAL
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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