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________________ सप्त धान्य-गेहूं, चना, उड़द, चावल, मूंग, जौ, तिल । कलसाइ चारि रुप्पय, हेममय वण्णई तोय भरियाई। दिव्वोसहि जुत्ताई, पयण्हवणे होंति तत्थ जोग्गाई ।।१४।। अन्वयार्थ-(चारि रुपय हेममय) चार मांदी और चार माने स्वर्ण के (कलसाइ) कलश र दियोसहि जुलाई) दिव्य औषधि से युक्त ( तोय) जल में ( भरियाई) भरे हुए कलश ( पय राहवर्ण) सूरि चरणों के अभिषेक के (जोगाइ) योग्य (होंति ) होते हैं । अर्थात् अभिषेक करना चाहिए ।।८४ ॥ अर्थ-चार कलश चांदी के और चार कलश स्वर्णमय निर्मित दिव्य औषधि महित जल से पूर्ण भरे हुए कलश से आचार्य के चरणों का न्हवण-अभिषेक करने योग्य माने गये हैं अर्थात् आचार्य चरणों का अभिषेक करना चाहिए ॥ ४ ॥ दिव्य औषधि-सहदेवी, बला, सिंही, शतमूलो, शतावरी, कुमारी, व्यानी ( एरंड), अमूतवल्ली । ध्वजा प्रमाण पुरिस पमाणं रम्म, तद्धयं मज्झिमं परं होइ। जण्हु पमाणं अहरं, इणरिउ चत्नारि सीहष्टुं ।।६५ ॥ अन्वयार्थ-(पुरिसं पमाणं) पुरुष के प्रमाण वाली (तत्) बह ( भयं) ध्वजा (रम) रम्य शुभ है । (जाह पमाण) घुटने के प्रमाण वालो ( ध्वजा) (पग्झिम) मध्यम होती है तथा (सीहाट इणरित) सिंह चिन्ह से चिन्दित सरल ( चत्तारि। चार (अहां) अन्य (ध्वजा) (परं} उत्तम होती है ॥६५॥ अर्थ-पुरुप के प्रमाण वाली ध्वजा श्रेष्ठ रमणीय-मनोरम होती है और घुटने के प्रमाण वाली सूर्य चिन्ह मे चिन्हित अन्य दूसरी चार ध्वजाएं शीघ्र ही उद्देश्य- लक्ष्य की पति अर्थात मुक्ति रानी को शीघ्र ही वरण करने वाला होती है ॥६५॥ सिंहासन प्रकरण सीहासणं पसत्थं भम्माणर सुरुप्प पाहणयं ।। आइरिय ठवणजोगं, विसेसदो भूसियं सुद्धं ॥६६ ।। अन्वयार्थ-(आइरिय ठवणजोग) आचार्य के बैठने योग्य ( सीहासणं पसत्थं ) प्रशस्त प्रशंसनीय सिंहासन (भम्याणर) काष्ट (सुरुप्प) सोना, चांदी तथा (पाहणयं) पारण का ( विसेसदो) विशेष रूप से ( भूसिय) भूषित सुशोभत तथा (सुद्ध) शुत होना चाहिए ।।१६ | EARTHRILLIAMERIZEL 70 1Y
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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