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________________ उक्तंच इत्थं गणाधिक चक्र महाभिषेक पूजा पुरा नियम वानिति यः करोति। सत्स्वर्ग सौख्यमनुभूय ततोऽवतीर्य प्राप्नोत्यनन्त सुखमक्षय मोक्ष लक्ष्म्याः ग. व. पू.।। अर्थ-इस गणाधिप चक्र-मंडल को जो नियम पूर्वक महा अभिषेक तथा पूजा करता है वह स्वर्ग सुख का अनुभव करके यहां से अवतीर्ण होकर यहां (कर्म भूमि से, अनन्त सुख स्वरूप मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करता है । १२ ॥ गणधर मण्डलं भवतु, भक्ति मंता भवतां च सिद्धिदम् ।।८०॥ ग.व.पू. अर्थात् गणधर मण्डल विधान शिवपद का दाता, दुरितों का नाशक, यश एवं सम्पदा को देने वाला सिसि को देने वाला है । इस प्रकार सम्पूर्ण वैभव सहित गणधर चक्र की पूजा करें । ऐसा आचार्य प्रवर का निर्देश है ।।५२ ॥ गणधर वलय पूजा दिवस प्रमाणः एवं बारस दिवसा उक्कस्से मज्झिमा हु छदिवसा। सबजहण्ण एओ, मझिमदो तिषिण वासरया ॥५३॥ अन्वयार्थ- (एवं) इस प्रकार (वारस दिवसा उक्कस्से) उत्कृष्टता से बारह दिन (मज्झिमा) मध्यम से (छद्दिवसा) छ/६ दिन (मज्झिमा) मध्यवर्ती होता है । (हु) वाक्यालंकार (सय जहएणण) सर्व जघन्यता से (एओ) यह (तिष्णि वासरया) दिन तीन दिन पर्यंत होता है ॥५३॥ अर्थ-इस प्रकार यह सब पूजा विधान महोत्सव उत्कृष्ट बारह (१२) दिन, मध्यम छ (६) दिन का मध्यवर्ती तथा सर्व जघन्यता से तीन दिन पर्यंत होता है ।।५३ ॥ सूत्रवाचनदि कर्त्तव्यः पडिदिवसं गुण जुत्तो, जोई जणो कुणदि तित्थ सुदपढणे। अहिसेग जोग्ग किरिया, आहवा परिवायणा किरिया ॥५४॥ अन्वयार्थ-१२, ६ या ३ दिन पर्यत (पडिदिवस) प्रतिदिन (गुणगुत्तो जोइ जणो) गुण संहित योगी जन (तिस्थ सुद पढणे) तीर्थकर कथित गणधर गुन्धित ग्रन्थ श्रुत का पठन करें, या (अहसेग जोगा किरिया) अभिषेक योग्य क्रिया करें (अहवा) अथवा (परिवायणा) प्रति वाचना/अध्ययन (किरिया) क्रिया (कुणदि)करें १५४ ॥ ATTITUTIIIIIIIRTAL 65 ITRITITI VITA
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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