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________________ आठपां शनि (मरिसमओ) मध्यम होता है किन्तु (एदे) ये ही (मंद गई) मंद गति वाले ग्रह (मि) नबमें स्थान में (सुहावहा) सुख प्रद/सुख प्रदान करने वाले होते हैं ॥४१ । अर्थ-आठवे मृत्यु, आयु भाव में सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, और शुक्र का परित्याग करना चाहिए यदि आठां चन्द्र शनि हो तो मध्यम होता है एवं नवम धर्म भात्र में मंद गति वाले ये ही ग्रह-सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु और शुक्र मध्यम सुख प्रदान करने वाले जानना चाहिए ॥४१॥ विशेष सूर्य के प्रभाव से ग्रह की शीघ्र चंद गति शीघ्र गति सूर्य के दूसरे स्थान में ग्रह। सम गति सूर्य के तीसरे स्थान में ग्रह। मंद गति सूर्य के चौथे स्थान में ग्रह। कुछ वक्र एवं वक्र- सूर्य के पांचवें एवं छठवें स्थान में ग्रह। अतिपक्र सूर्य के सातवें एवं आठवें स्थान में ग्रह । कुटिल गति- सूर्य के नवमें स्थान में ग्रह । (७) मार्गी गति सूर्य के दसवें स्थान में ग्रह। शीघ्र गति सूर्य के ग्यारहवें स्थान में ग्रह । अति शीघ्र गति - | सूर्य के बारहवें स्थान में ग्रह ।। इस प्रकार सम्पूर्ण ग्रहों की गति जानना चाहिए। ग्रह गति फलादेश: | फल वक्रीग्रह परदेश भेजता है। | उदयगत ग्रह | सुख प्रदायक मार्गी ग्रह | आरोग्यता देता है। अस्तग्रह आदर एवं धन नासक क्रूरग्रह पक्की | अतिक्रूर ग्रहवक्री में बलवान शुभ ग्रह वक्री | शुभप्रद ग्रह मार्गी में । कमजोर नवम् धर्म भाव गत ग्रहः देव गुरु सुक्कणामा, मझिमया बुह सणिच्चरा णूर्ण। वजेयव्वा य सया, मंगल ससि दिणयरा णवमा ॥४२॥ अन्वयार्थ-(णवमा) नवमें भाव में (देव गुरु सुक्क णामा) वृहस्पति और शुक्र WORRIOTIRTHATAE 55 THMA अवस्था
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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