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________________ भी मध्यम है एर्ष तीसरे स्थान (भाव) में शुक्र का स्थित होना मुनि के द्वारा दोष युक्त -अशुभ कहा गया है ॥३६॥ । चतुर्थ सुहत् भाव गत ग्रहः बुह गुरु सुक्का सुहया, वेयगया मज्झिमो हवे चंदो। सेसा सव्वे-विगहा, विवन्जिया पयत्तेण ॥३७॥ अन्वयार्थ-चौथे भाव में (बुह) बुध (गुरु) गुरु (सुक्का) शुक्र (सुख्या) शुभ होते हैं। चौथे में (चंदो) चन्द्र (मज्झिमो) यध्यम (हवे) होता है (सेसा) शेष (सव्ये विगहा) सभी ग्रह (पयत्तेण) प्रयत्न पूर्वक (विवज्जिया) परिहार करना चाहिए ३७ ॥ अर्थ-चौथे सुहृत् (सुख) भाव में बुध, गुरु, शुक्र सुख देने वाला शुभ होता है तता बलवान चन्द्र मध्यम है एवं शेष सभी ग्रह -सूर्य, मंगल और शनि ग्रह प्रयत्न पूर्व परिहार-छोड़ना चाहिए ॥३७॥ विशेष-बल सूत्रशुक्लादि रात्रि दशके ऽहनि मध्यवीर्य शाली द्वितीय-दशकेऽतिशुभ प्रदोऽसौ। चन्द्रस्तृतीय-दशके बलवर्जितस्तुसौम्येक्षणादि-सहितो यदि शोभन: स्यात् ।।१०॥ अर्थात् शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से दश दिन चन्द्रमा मध्यम बली होता है, फिर दश दिन-शुक्लपक्ष एकादशी से कृष्णपक्ष पंचमी तक पूर्ण चन्द्र -(बलवान बन्द्र) अतिशुभप्रद होता है। फिर दश दिन-कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अमावस तक बलहीन चन्द्र होता है। यदि अशुभ क्षीण बली चन्द्र शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र, और केतु से दृष्टयुत हो सो शुभ दायक होता है। पंचम भाव मत ग्रहः रवि ससि कुज सुक्क सणी, पंचमगा मज्झिमा मुणेयव्या। बुह गुरु विय दुषिणवि, मंगल माहप्प-कत्तारो ॥३८॥ अन्वयार्थ-(पंचम) लग्न से पांचवें भाव में (रवि ससि कुज सुक्क सणी) सूर्य, चन्द्र मंगल, शुक्र और शनि (मज्झिमा) मध्यप होते हैं। (बुह गुरु विय) बुध और गुरु WTORREVISION
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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