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________________ अचल शुभ तिथि: शुभ नक्षत्र: शुभयोग: शुभ मुहूर्त २,३,५,७,१०, ११, १२, मृग, हस्त, स्वाति, ३ उपाए अनुराधा येणा धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, रेवती, रोहिणी ये नक्षत्र शुभ हैं। प्रीति आयुष्मान, सौभाग्य, सुकर्मा, बुद्धि, शुम, सिद्धि, साध्य शुभ शुक्ल एवं ऐन्द्र योग । स्थिर राशि- २, ५, ८, ११ तथा इसके नवांश में शुभलग्न : शुभ वार: शुभमाह : गोत्रर शुद्धि ग्रह :- गुरु, रवि, चन्द्र । एक अन्य मत - सोम, मंगल, बुध और शुक्र ये वार, १,६,११,५ व १० ये तिथि अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, हस्त, विशाखा, मूल श्रवण तथा पूर्वा भाद्रपद ये नक्षत्र । वार तिथि, नक्षत्र इन तीनों का योग मिलने पर दीक्षा ग्रहण तथा व्रत ग्रहणादि कार्य रविवार, गुरुवार, शुक्रवार वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्तिक मगसर, माघ, फाल्गुन । करने में शुभ है ॥ ३२ ॥ जइ विह मूलगुणाणं परिणमणं भक्ति बीय तण्णामं । कीरति अपमत्ता ततो विबुत्व पामणेओ ॥ ३३ ॥ अन्वयार्थ - (जह विह) जिस विधि से (मूल गुगाणं) मूल गुप्पों का (परिणाम) परिगमन / परिपालन होता है। ( तणामं वीर्य ) उसका दूसरा नाम ( अप्रमत्ता) निष्प्रमाद / यत्न पूर्वक (कीरंति) किया / रखा जाता है ( ततो) उसके बाद (a) बिम्ब / जिनबिम्ब को तरह (गमणेओ) नमन करने योग्य होता है ॥ ३३ ॥ अर्थ - जिस विधि से मूलगुणों का परिणमन परिपालन वर्तन होता है उसी का दूसरा नाम भक्ति है। उसी भक्ति से यह प्रमाद रहित प्रतिबिम्ब की तरह नमन करने योग्य होता है ॥ ३३ ॥ अर्थात् सूरि पद दीक्षक भक्ति पूर्वक मूलगुणों में परिणमन / आचरण करता है वह उसी परम भक्ति के द्वारा प्रमाद रहित होकर दीक्षा की विधि के प्रकाशक अरहंत परमगुरु तथा दीक्षा दाता आचार्य को भक्ति पूर्वक विनय पूर्वक नमन एवं वंदन करता है। यह भक्ति की विशेष प्रक्रिया है। उस सूरि पद संस्कार के बाद वह जिनबिम्ब की तरह नमस्कार करने योग्य / नमनीय होता है ||३३| 151VUUUMAMM
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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