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________________ चन्द्र ग्रहण सूर्य ग्रहण समय पूर्णमासी के निशा शेष प्रतिपदा की सन्धि में चन्द्र ग्रहण होता है और अमावस्या और प्रतिपदा की सन्धि में सूर्य ग्रहण होता है कृष्ण पंडिया ( प्रतिपदा) को जो नक्षत्र हो उससे सोलहवां नक्षत्र अमावस्या को पड़े और अमावस पडिवा मिले तो सूर्य ग्रहण होता है। जिस नक्षत्र पर सूर्य हो उससे १५ वां नक्षत्र पूर्णमासी को पड़े और रात्रि को पड़िया मिले तो चन्द्र ग्रहण हो । राहु की राशि में या राहु से २,६,७,१२ वीं राशि में सूर्य चन्द्र । इस प्रकार ग्रहण का वर्णन संक्षिप्त में कहा । तृतीय तिथि खण्ड - जिसको दूसरे शब्दों में तिथि क्षय कहते हैं जब एक दिन में तीन तिथियाँ वर्तमान रहती हैं तो मध्यम तिथि का क्षय माना जाता है तथा जब एक दिन में दो तिथियां रहती है तो उत्तर तिथि का क्षय माना जाता है। यथा: या एकस्मिन वासरे द्वयन्ता द्वयोस्तिध्योः यत्र समाप्तिः तत्रोत्तरा क्षय तिथि: जैसे: गुरुवासरे घटिकायं तृतीया तदुत्तरं चतुर्थी पर पंचाशद् घटिका पर्यंत एवमुत्तार चतुर्थी क्षयतिथि एवं क्षय तिथिष्टा, सूर्योदये वारस्या प्राप्तेः । फलं - कृत मंगलं तत्र त्रिस्पृगव में तिथौ भस्मी भवति तत्सर्वं क्षिप्रमनौ यथेन्धनम् ॥ ज्यो. च ५ अर्थात् क्षय तिथि में तथा वृद्धि तिथि में दोनों ही अवस्थाओं में शुभकार्य वर्जित 30 - भूमिकम्प - भूकम्प - भूमि में हलन चलन का होना । यह अचानक होने वाला उत्पात हैं जैसे भूकम्प, उल्कापात भौम उत्पात ये आकस्मिक उत्पात कहलाते हैं। निर्घोष - निर्दोष अर्थात् अतिशय तीव्र आवाज मेघों की गर्जना, बिजली की गर्जना आदि । ये सब अन्तरिक्ष उत्सत हैं जैसे निर्दोष-निर्घात, परिवेष, इन्द्र धनुष, दिग्दाह आदि । निर्घात भयंकर शब्द करते हुए बिजली गिरने का नाम निघांत हैं अथवा पवन के साथ पवन टकरा कर गिरता है तब जोर से कड़कड़ाहट शब्द होता है जब बड़ी निर्घात कहलाता है। परिवेष आकाश में कभी-कभी महल आदि दिखाई देते हैं। सूर्य-चन्द्र के चारों तरफ अनेक रंग की किरणों का जो मेरा दिखाई देता है वही परिवेश हैं सूर्य-चन्द्र की किरण पर्वत के ऊपर प्रतिबिम्बित होकर पवन के द्वारा मण्डलाकार होकर थोड़े से मेघ वाले आकाश में अनेक रंग और आकार के दिखते हैं वही परिवेष है अथवा वर्षा ऋतु में सूर्य या चन्द्रमा के चारों ओर एक गोलाकार - 49 )
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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