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________________ अर्थ-पाठवां, दसवां तथा ग्याहरयां शुक अबरली होता है एवं दूसरा, तीसरा, पाचवां, छठवां तथा ग्यारहवां बुद्ध व्रत ग्रहण करने हेतु शुभ होता है ॥२९॥ तइये छठे दसमें एक्कार सगोय मंगलो रम्मो। सुक्कंगारय सणिणा सत्तमओ ससहरो असुहो॥३०॥ अन्वयार्थ -(तइये) तीसरा (छठे ) छठयां (इसमें) दसवां (एक्कार संगोय) , और ग्यारहवां (मंगलो) पंगल (रम्पो ) रम्या शुभ है। (सक्कंगारय) शुक्र मंगल (सणिणा) शनि (सत्तमओ) सातवें में तथा (ससहरो) चन्द (असुहो) अशुभ है ॥ अर्थ-तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें स्थान में स्थित मंगल रम्य-उत्तम शुभ होता है। सातवें स्थान में शुक्र, मंगल चन्द्र तथा शनि अशुभ है ॥३०॥ ग्रह बल शुभाशुभ चक्र (गा. 28 से 30 तक) ग्रह बल अबली/बलहीन बलवान सबली अबली शुक्र बुध शुभ (व्रतग्राह्य) मगल ३,६,१०,११ शुभ मंगल अशुभ शक्र अशुभ शनि अशुभ अशुभ चन्द्र लग्न बला भाव में : इय सम्म णाऊणं लग्गबलं दिन्जए गरे दिक्खा। लग्गेण विणा दिक्खा, मारइ णासेइ फेडे ॥३१॥ अन्वयार्थ (इय) इस प्रकार (लग्गबलं) सान बल को ( सम्भ) भली भांति (णाऊणं) जानकर (णरंदिक्खा) मनुष्य को दीक्षा (दिजए) देखें । ( लग्गेण विणा) लग्न के बिना (दिक्खा) दी गई दीक्षा (मारइ) मारती है, (णासेइ) नाश करती है (फेडे) तथा दोक्षा च्युत करती है ॥३१॥ VAAMARIKAHANIHIRICISTRIAISE 47 VIDHIRTISTRATI
SR No.090258
Book TitleKriyasara
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSurdev Sagar
PublisherSandip Shah Jaipur
Publication Year1997
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size2 MB
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