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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हम नहीं कह सकते परन्तु उक्त सामायिकभाष्य और पं० जयचंदजी के पाठ में विशेष भेद नहीं है । सिर्फ सामायिक स्वीकार और सामाधिभक्ति के पाठ में हीनाधिकता अवश्य है। यह सामायिकपाठ मूलमूल भी कई प्रतियों में पाया जाता है उनमें भी किसी किसी में प्रायः यही भेद है। हमको अपने अनुवाद के समय तक उक्त कोई भी टीका ग्रन्थों के देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था। प्रायः सब प्रतियों में ईर्यापथविशुद्धि,शान्त्यष्टक, सामायिकस्वी. करण, सामायिकदंडक और चतुर्विंशतिस्तवदंडक पूर्वक बृहच्चैत्य भक्ति, चन्द्रप्रभस्वयंभू, वत्ताणुट्ठाणे इत्यादि चतुर्विंशतितीर्थकर जयमाला, वर्षेषु वर्षान्तर इत्यादि लघुचैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति, शान्तिभकि और हीनाधिकरूप समाधिभक्ति इतना बड़ा संगृहीत सामायिक पाठ पाया जाता है। जो 'अधिकस्याधिकं फलं' के अनुसार बढ़ गया है। उसी पर टीकाएँ रची गई हैं। एक तो यह पाठ बड़ा है दूसरे त्रिकाल देववन्दना या त्रिकाल सामायिक में उल्लिखित सब पाठों के करने का विधान नहीं है। क्योंकि आगम में त्रिकाल देववन्दना या त्रिकाल सोमायिक में चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति इन दो ही भाक्तियों के किये जाने का विधान है। उदा. हरण भी इसी तरह देववन्दना के किये जाने का पाया जाता है। यथा समपादौ पुरास्थित्वा जिनार्चनकृताञ्जली । उचार्योपांशुपाठेन प्रागीर्यापथदण्डकं ॥ . कायोत्सर्गविधानेन शोधितेर्यापथौ पथि । जनेऽतिनिपुणौ क्षौण्यां निषण्णौ पुनरुत्थितौ ॥ २-यहींजयमाला पुष्पदन्त प्रणीत यशोधर चरित की है, जो बड़ी संकत देव शास्त्रगुरुपूजा में भी पाई जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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