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( ११ )
स्नपनाची स्तुतिजपान् साम्यार्थ प्रतिमार्पिते । युंग्याद्यथाम्नायमाद्याद्यते संकल्पितेऽर्हति ॥
यदि इनकी टीका प्रभाचन्द्राचार्य ने भी की है तब तो प्रभाचन्द्रा चार्य तेरहवीं शताब्दी के बाद के हैं । नहीं तो आशाधर जी से पूर्ववर्ती हैं । तेरहवीं शताब्दी से कितने बाद के हैं ? यह यदि पर्यालोचना की जाय तो इनका समय चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध और पन्द्रहवीं का प्रारम्भ अन्य प्रमाणों से सिद्ध होता है । इस विषय को 'एक नाम के अनेक आचार्य नाम के लेख में कभी लिखेंगे ।
झालरापाटन सिटी,
७, वि० १६३२ ।
चैत्र
अन्त में नम्र निवेदन यह कि इस ग्रंथ के सम्पादन, संशोधन, और संकलन में कई त्रुटियां रह गई हैं तथा अज्ञान व प्रमादवश और यथेष्ट साधनाभाव के कारण कई अशुद्धियां भी रह गई हैं। कहीं कहीं मात्रा आदि जो संशोधन के समय ठीक थीं परन्तु छपते समय उड़ गई हैं, अतः प्रेस की वजह से भी कितनी ही अशुद्धियां हो गई हैं । अतः इस विषय में क्षमाप्रार्थी हैं। आशा है पाठकवृन्द अशुद्धि निमित्त पठनजन्य कष्ट के होने पर क्षमा प्रदान करेंगे ।
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प्रार्थी
मुनिचरण सरोजैक भ्रमर-पन्नालाल सोनी - शास्त्री,
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