________________
१
॥
कवियर बृलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
दश कोराकोरि धनरोय । ताकी हो एक पदरोय ।। बै दमा कोराकोरी जब वहैं । तब जग सेरि नाम जिन कहे ।।३।। ता जग सिद्ध को सहम भाग । गणत एक रज्जू यह लाग ।। अंसे चौदह रज्जु प्रमान । उचे तीन लोक को जान ||७|| रज्जू तीन से तेतालीस । घनाकार वर.ण्यों जगदीस ।। प्रब सुनि पूरब की मरजाद । जामैं लहिय असा प्रादि ।। : ।
इति रज्जू गणित
दोहा सत्तरि लाख करोरि मित, अप्पन सहस करोरि ।। इतने वरण मिनटगे, पुरल गंगा नोरि !!१!!
इति पूरब गणित षट्काल वर्णन
चौपई मध्यलोक सब रज्जु प्रमान । भूत सिद्धान्त करै वर्षान || अब सुनि छहौं काल व्यौहार । बितक जीव कैसो विस्तार ।।१।। प्रतकाल मासे दश पैत । भरत ऐरावत भूमि समेत ।। छहों काय प्राणी नहीं दीस ! तब एक जुक्ति कर जसईस ।।२।। जुगल बहत्तरि ले उछंग । विजयाग्ध घर लेउ अभंग ।। तब फिर दशों घेत्र निमये । जैसे के तैसे वेदिये ।।३।।
सुषमा सुषमा काल दरगन
चौपई
सुषमा सुषमा प्रथम जो काल | अायु प्रवर्तते तहां विसाल ।। जन उनि जुगलनि इन्द्र विचार । दश त्रिनि मैं करे संचार ||४|| प्रब सुनि काल रीति क कछु कह्यो । जितिक प्रमाण व्यवस्थिति लहौँ ।। सागर कोराकोरी नारि । प्रथम काल मर्याद विचार ।।५।। जुगल मीच वरत सहि काल । सुदर कोमल अति सुकमाल ।। मति श्रति प्रधि जु तीनों ज्ञान । उपज तहां थे साथ बखान ||