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बचन कोश
२१. नमिनाय स्तवन
सोरठा वरष पंचलाष जानइनिहू को जब होह गये 11 उपजे ममि भयवान, मिथिलानगरी विजय पर ॥१॥
चौपई घीरा राणी जननी जैन । नीलोपल लांछण पद पैन ।। पंद्रह बनुक अरु कंचन रंग । दश हजार यरष ली संग ।।२।। तीनि जनम थे छाडची कोह । फौनी हरिवंशनि स्यों मोह | परिग्रह स्परग योन को पार ! बकुल सिगिने कीनो मन ॥३॥ नेमिदस संयोगी राय । दूजे दिन गोक्षीर घटाइ ।। केवल उपज्यो निस की प्रापि समोसरण हूँ की मरजाद ॥॥ पांनी मलें दम मरु तीनि । गएषर सभा चतुर परवीन ।। जिन सूठाडे भिवपुर गए । गिरि सम्मेद कल्याणक ठए ॥५॥
चोहा पवार मधेरि द्वज को, गर्भ कल्यारमक होइ। यदि प्राषाढ़ दशमी दिना, जनम महोछव सोइ ॥६॥ परिवा स्याम प्राषाढ की, दीक्षा लई जिनेश्च । पापहन सुदि एकादशी, उपग्यो शान महेश ।।७।। बदि बौदशा बैशाष की, ममए कियो शिव मोर । कर्म रूप रिमदि में, भए प्रतापी दोर ।।
इति नमि वर्णन
२२. नेमिनाथ स्तवन
सोरठा मसी तीन हजार, प्रद' सात वरष में। अकुल तारणहार, नेमिनाथ द्वारावती ।।१।।