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पचन कोश
दोहा
पाषाढ बदि वडि के दिन, धर्म घरयो जिनमान । फागुण बदि बौदभि गनौ, जनम ओर प्रवदात्त ।।७।। भादब सौदनि अबरि, लोंच लियो जिनराज । गाध उजेरि द्वज को, पंरपनि माद !!!
इति वासुपूज्य वर्णन
१३. विमलनाथ स्तवन
सोरठा सागर नी तीस परजंत, कंपिलापुर नयरी जनम । विमलनाथ मरहत, स्थामा राणी जाइयो ॥१॥
चौपई पिता जिनेश बानि कृत वर्म । शबर लांछण देषत मर्म " साठि धनक दीर्घता जानि । उत्त ने लाष बरपति तिथि पानि ॥२॥ कनकवणं अरु इक्ष्वाकुल । पोषतीन जनमर्थ भयो संतोल ।। राजरिवि साभी सब देव । छप्पन गराधर करत जु सेव शा जंबू वृष्य सघन सुविसाल । तीनौ तपु तहाँ दीनदयाल ॥ दूजे दूषु लीयो गोक्षीर । नंदराव दाता बरवीर ॥४॥ महापुरुष पाटन नप जानि । सांझ समै भगो केवलज्ञान ॥ राजनीति सन तजी निदान । समोसरण छह जोजन जानि ।।।। उभे जोग गिषर सम्मेद । जाने मोक्षपुरी के भेद ।। जेठ वधि दशमी के दिना । माता गर्भ धर्यो जिन तना ॥६॥ इति विमलनाथ वर्णन
१४. अनन्तनाथ स्तमन .
वोहरा सागर नो पूर भए, ता पीछे जु अनंतु । जिन- जग उहित भयो, पोदशि त सु महंतु ।।१।।