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________________ YE कविवर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज बोहरा समवसरण जिनवर तणों, रच्यो देवतनि घाइ । ग्यारह जोजन को यो यघमंजन सुपदाइ ||६| फागुण सुद्दि नौमी गरभ, जनम पूर्णिमा पूल । छठि उच्चार चैत को लीयो 11 सोरठा कार्तिग पूण्यो ज्ञान, केवलरिद्धि जिनेश को 1 काती यदि निर्वाण, हूती चौथि ता दिन प्रगट !!!! इति संभवनाथ वन ४. अभिनन्दन नाथ स्तवन सोरठा उदकोरि विष लाख, वीतें जग उड़ित भये । श्रुत सिद्धांत है सापि अभिनंदन जिन भान वत ॥१॥ चौपई समर राय गृढ़ तिमिर तसाइ । प्राची विसा शिधारथ माइ ॥ अवधपुरी कपिल जानि । कुल इक्ष्वाक महा बलवान ॥२॥ सुवरवत देही की कांति । षोडश और शत मरणधर पांति || पूरब लाष पचास घरोग काय अहूट सत धनक मनोग ||३|| इन्द्रदत्त विनिता पुर राम । दूर्जे दिन गोक्षीर घटाइ ॥ लालरि वृक्ष सवन सोमंत । ता तर जोग धर्यो श्रहं ॥४॥ तीन जनम आर्गे सुधिवांन । सांझ समें भयो केवलज्ञान ॥ छोडत राज न कोनों मोह | दहा एहें राम श्ररु दोह ||५|| समोसरण जोजन दश श्रहं । रच्यो देव वनि सहित समद्धि ॥ ठाढे जोग मोक्ष को गए। गिरि सम्मेद तीर्थकर भए ॥६॥ दोहा वैशाख बजेरी घटि प्रकट, तप अरु गर्भ कल्याण | माघ उजेरी द्वादशी, ता दिन जनम अरु ज्ञान ॥ ७ ॥ t
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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