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संरक्षक के दो शब्द
श्री महावीर प्रस्थ अकादमी के षष्टम पुष्प 'कांचवर बुलाखापद बुलाकीदास एवं हेम गम' को पाठकों को हाथों में देते हुये मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। सम्पुर्ण हिन्दी जैन साहित्य को २० भागों में प्रकाशित करने के उद्देश्य से संस्थापित यह अकादमी निरन्तर अपने मागे बढ़ रही है । मन में 1-नों
तादि के तीन प्रमुख कवि बुलातीपद, बुलाकीदास एवं हेमराज के व्यक्तित्व एवं कृतिरक्ष पर प्रकाश डाला गया है। तीनों ही कवि प्रागरा के थे तथा अपने समय के सामर्थ कवि थे । महाकवि घनारसीदास ने आगरा में जो साहित्यिक चेतना जागृत की थी उसीके फलस्वरूप प्रागरा में एक में पीछे दूसरे कधि हो गये और देषा एवं समाज को. नयी-मपी एवं मौलिक कृतियां मेंट करते रहे। इस भाग के प्रकाशन के साथ ही 10 फासलीवालजी ऐसे २६ जन प्रमुख हिन्दी कवियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश हाल चुके हैं, जिनकी सभी कृतियां हिन्दी साहित्य की बेजोड़ निमिया हैं। इन कवियों में ब्रह्म रायमल्ल, धूवराज, छोहल, गारवदास, ठक्कुरसी, ब्रह्म जिनदास, भ० रनकीति, कुमुक्षचन्द्र, माचार्य सोमकीति, सांगु, ब्रह्मयशोषर, पुलाखीयाद, बुलाकीदास, हेमराज पछि एवं हेमराज गोदीका के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। इन सभी ऋभिमों में हिन्दी साहित्य को अपनी कृतियों से गौरवान्वित किया है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत भाग में कविरस्न बुलाखीचन्द ऐसे कवि है जिनका परिप्रय साहित्यिक अगस्त को प्रथम पार प्राप्त हो रहा है। पा. कासलीवालजी की साहित्यिक खोज एवं शोध सचमुच प्रशंसनीय है, जो अकादमी के प्रत्येक पुष्प में किसी न किसी प्रचचित एवं प्राप्त कवि को साहित्यिक जगत के समक्ष प्रस्तुत करते रहते हैं । मुझे पूरा विश्वास है कि हा. साहम को लेखनी से प्रब तक उपेक्षित सैकड़ों हिन्दी मैन कमि एवं मनीपो तथा उनका विशाल साहित्य प्रकाश में पा सकेगा।
श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी की स्थापना एवं उसका संचालन डा. कासलीपाल की साहित्यिक निष्ठा का सुफल है। को वर्ष पूर्व जब मुझे मेरे घनिष्ठ मित्र