SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 प्रवचनसार भाषा (कवित बंध) आगे शिष्य जन को सास्त्र का फल दिखाय सास्त्र की समाप्ति करे है कवित्त ओ नर मुनि श्रावक करि याको, घारत जिन भागम श्रवगर्हि । प्रवचनसार सिद्धांत रहसि को प्राप्त होत एक छिन माहै । भेदाभेद सरूप वस्तु को साधत सौ मालम रस चाहे सो सिद्धांत फल लाभ तत्व बल पूरन इति पंच रत्न कथन समाप्त | प्रथ ग्रंथ कर्ता कवि स्तुति - बोहरा मूल प्रांय करता भये कुंद कुंद मतिमान । २६१ कर्म कलंकति दाहै ॥९७६ ।। प्रमृतचंद टीका करि देव भाषा परबांन ॥ ६६७८ खेसरी छन्द पांडे हेमराज उपगारी नगर प्रागरे में हितकारी । तिन्ह यह ग्रंथ सटीक बनाये, बालबोध करि प्रगट दिखायां ||१७|| बाल मुद्रि फुर्ति अरथ बखानं स धगोचर पर पहिचान । लप बुद्धि हम कवित बनाये बुद्धि उनमान सर्व वनि भायौ ॥२७६॥ जीवराज जिन धर्म घरेया, सबै जीव परिक्रिया करिया । प्रवचनसार ग्रंथ के स्वादी, रहे जहां न होत परमादी ॥८०॥ तिन्ह उर मैं विचार यहू कीयो, प्रवचनसार बहुत सुख दीयो । कंठ पाठ करि है सब कोई ॥८१॥ कवितबंध भाषा सुखदानो । घर घर विषै पढे सबु कोई ।।६६२।। मनिष जनम को सुभ फल कीजे । करिये वेग न विलंब कराई ||६८३॥ अमृत सम तुम यात बखानी । क्यों करनी प्रवचन के तांई ॥९८४॥ लघु दीरघ मै मो मति माठी । घर पुनयक्त सब्द भनि कोई ।।६८५ ॥ कषित उचार किसी विधि ठानी । पंडितजन भर कविता होई, मोहि बिलोकि इसी मति कोई ।।१८६६ कचित बंध भाषा जो होई, सब हमस्युं यहु बात बखानी प्रवचन कवित बंध जो होई, इहि विधि काल बसीत करीजं, निज पर सब ही कौ सुखदाई, हेमराज फुनि यहु उर मानी, मलप बुद्धि मो मांझ गुसाईं, मैं नहि कवित छंद की पाठी, छंद भंग गर्न गन जु होई, तिन्ह को कछु भेद नहिं जानौं,
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy