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________________ २४८ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज चौपाई सिद्ध अवर संसारी जीव झान भाव करि प्रोग्य सदीव । जयाफार शात परजाय उत्पादादि सक्षत समवाय ।।५।। सवैया-३१ कीयो है विनास जिन फातिका कर्म च्यार । उदयो अनंत बर वीर तेज परि के॥ इन्द्रिया रहित ज्ञानानंद निज भाष वेदि । ममता उछेदि पराधीन मुख हरि है। असे भगवान कान दर्शन प्रकासबान । प्राभर्ण मानि निरावर्ण दशा करि के। जैसे मेघ पटातीत दीसत अखंड जोति । त्यों ही जीव सहज स्वभाव कम दरि के ॥५२॥ अडिल भोजन सुख दुख भूख शरीर सम्बन्ध है। तिनके केवल शान व्याप प्रबंध है। उदय प्रतिद्री शान सदा सुख रूप है। अक्स प्रखंड अमेव उद्योत मनुफ है ।। ५३॥ दोहा सोह प्रंसगति अग्नि के लग न कबहू चोट । त्यो सुख दुख बेवक नहीं तात जीव सन वोट ।।५४॥ अडिस्स केवल मान स्वरूप केवली परनए । सर्व द्रव्य परजाय प्रगट जम अनुभए । प्रवाहादि जे भेद क्रिया करि हीन है। यह प्रतीन्द्रीय मान सदा स्वाधीन है ॥५॥ जगत वस्तु छानीन को, सब इन्द्री गुन जानि । प्रक्षातीत उदै भयो, निजाधीन निज ज्ञान ।।५६)
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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