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________________ २१६ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज परम कहिए उत्कृष्ट भाव कम तो कर्म रहित या प्रकार प्रात्मा के तीन भेद जानू । बहिरात्मा, अन्तरात्मा परमात्मा सिनि में जो देह कू प्रात्मा बाण सो प्रारगी मूढ कहिए। उक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि हेमराज ने प्रवचनसार गन टोका में जिस शैली को अपनाया था उसी को प्रागे प्रन्थों में अपनाया गया। ७ पञ्चास्तिकाय गद्य टीका पञ्चास्तिकाय भी प्राचार्य कुन्दकुन्द को कृति है जो प्राकृत भाषा में निबद्ध है 1 इसमें दो श्रुतस्कंध (प्रधिकार) हैं षदश्य-पंचास्तिकाय और नव पदार्थ । इन अधिकारों के नाम से ही इनके प्रभिधेय का नाम हो जाता है। इस पर भी भाचार्य अमृतचन्द्र एवं जयसेन की संस्कृत टीकाए हैं। पाण्डे हेमराज ने अपने गुरु रूपचन्द के प्रसाद से पश्चाम्तिकाय की भाषा टीका लिखी थी। मानन्द जी मामी ए1 अंगरागर दोगी । पञ्दास्तिकाय भाषा टीका का रचनाकाल संवत् १७२१ लिखा है लेकिन रचनाकाल सूचक पद्य को दोनों ने उस्लेख नहीं किया है। जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में संग्रहीत एक पाण्डुलिपि संवत् १७१४ की लिखी हुई है इसलिये पञ्चास्तिकाय गच टीका का लेखन काल संवत् १७२१ तो नहीं हो सकता । स्वयं गद्य टीकाकार में रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं किया है । पाण्डे हेमराज ने निम्न प्रकार टीका की समाप्ति की है प्रागै इस ग्रन्थ का करणहारे श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने जु यह पारम्भ कीना था त्तिस के पार प्राप्त हुमा कृत कृष्ण । अवस्था अपनी मानी कर्म रहित शुद्ध स्वरूप विर्ष थिरता भाव धा। असी ही हमार विष भी श्रद्धा उपजी इसि पंपास्तिकाय समयसार ग्रन्थ विर्ष मोक्षमार्ग कथन पूर्ण भया। मह कछु एक अमृत चन्द्र कृत टीका ते भाषा बालावबोध श्री रूपचन्द गुरु के प्रसाद थी। पांडे हेमराज ने अपनी बुद्धि माफिक लिखित कोना । जे बहुश्रुत है ते सवारि के पहियो ।। १ देखिये प्रभेकान्त- वर्ष १८ किरण-३ पृष्ठ संख्या १३८. २ हिदी मैम भक्ति काम्य पोर कमि-पृष्ठ सं० ११५.
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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