SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे मराज २०७ को पंडित एवं प्रवीण इन दो विशेषणों के साथ वर्णन किया है। इससे प्रकट होता है कि हेमराज संवत् १७०१ में ही समाज में अच्छा सम्मान प्राप्त कर लिया था तथा उनकी गिनती पंडितों में की जाने लगी थी। लेकिन हेमराज कद से पापडे कहलाने लगे इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। मुझे ऐसा लगता है कि ये पंडित कहलाते थे पोर धीरे धीरे पाण्डे कहलाने लगे। पौर पाण्डे राजमल के समान इन्हें भी प्रबचनसार, पञ्चास्तिकाय जैसे अन्यों की भाषा टीका करने के कारण इन्हें भी पाण्डे कहा जाने लगा । पाण्डे हेमराज की मन तम निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुकी है-- १ प्रवचनसार भाषा (गध) रखमाकाल सं० १७०९ संवत् १७०४ ३ भक्तामर स्तोत्र भाषा (गद्य) ४ भक्तामर स्तोत्र भाषा (पद) ५ चौरासी बोस (सितपट बौरासो बोस) ६ परमात्मप्रकाश भाषा ७ पञ्चास्तिकाय भाषा ८ कमकापा भाषा १ सुगन्ध वशमी व्रत कपा १० नथम्रक भाषा ११ गुरुयुजा १२ नेमिराजमती जसरी १३ रोहिणी व्रत कथा १४ नन्दीश्वर प्रत कमा १५ राजमती लनरी १६ समयसार भाषा संवत् १७२६ उक्त कृतियों के अतिरिक्त कुछ पद भी राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में संग्र. हीत विभिन्न गुटकों में उपलब्ध होते हैं। उक्त कृतियों का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy