SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाण्डवपुराण शक्ति बान सब छोड्यों गुरु नै तुरित ही । वृष्टिद्युम्न में छिन मैं देखो परत हो || तीन बुधि धृष्टार्जुन गुरु मैं घाइ के । लोड भेट की मी वोर बगाइ ॐ ॥ २३३ ॥ सीबी गुरु हो खंड खंड करि डार्थी छिन में भेदि मैं ।। तबहि द्रोण गुरु ढाल लई कर बाह लैं । पकरि खडग को घायो हाथ सु दाह नं ॥ २३४ ॥ षष्टम्न को मारन सनमुख ही चल्यो । मनो ऋद्ध काल विदारन को चल्मो || इसी अंतर भीम गदा ते सुत कलिंग की मार्यौ करि हस्त हीं । के पस्त हीं ॥ २३५॥ कलिंग कौं । चतुरंग को | नृपत हीं । प्ररिगन दलत हीं ॥२३६॥ | नीतवंत बहु उन्नत पुत्र दल परयो शोमा मनु कौरव करे मीम संत्रासित धरत रोस रण मांहि सु कौरव गदा बात तैं सात सतक रथ चूरए । सत्रु सैंनि संधारि मही में पूरए । इक हजार हृति हाथी कीनें छय सही | घोर बीर रण उद्भुत पावनि जय लही ।। २३७|| इसी अंतरे गुरु नं तहि कुठार ज्यौं । खडग सृष्टि को खेद्यो तीछन धार स्मों ॥ जुद्ध माझ श्रभिमनु सु तोलो श्राइ के । टुकि टूकि रथ कीन्यों गुरु को भाइ के ॥ २३६॥ तबहिं प्राइक पोंच्यो सुख दुरजोच को | नाम सुलखमण सु मानौं पुंजक रोध को || आवत हीँ तिन धनुष सुभद्रा सूनु कौं । खंड खंड करि ढार्थों मानो ऊन को ॥२३६॥ १८१
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy