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________________ १६८ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज पोहरा रजाइ ||३६|| कौरव दल दलमलि घरनि, छाई रेनू प्रकास । दुख कहिये को भूमि मनु चली इन्द्र के पान || ३४ | क्रम तैं कौरव बाहिनी, मिली पनि दल संग | सब ते अधिक समुद्र को, भाइ रली मनु गंग ॥ ३५ ॥ दुरजोधन को मान बहु राख्यो मागध राह कर मिल्यो यो कोरवाह, ज्यों रवि किरण तब पठयो चक्रीस नै, दूत यादवनि तुरित जाइ सों बीनयो, सब सो बचन भो जाधव सुम प करत, श्राज्ञा यह जा बसे किम जलधि तुम, तजि के समुदबिज बसुदेव ए. हम प्रीतम हैं पादि । वांचि प्रापको किहि लये, गए सुछिपि के बादि ||३१|| चरन जुगल चक्रीस के सोवोह यब तनि गवं । जा प्रसाद तें तुम लहो, राज पाट ऐसी सुनि केवल बली बोल्यो कोषित होइ । हरि को सजिया मू विषे चक्री घोर न कोइ ॥ ४१|| ऐसी सुनि फरकत पर दूत भनेँ जातें तुम सागर विष, जाय छिपे तिस पद पंकज सेव तँ, कहीयत कौन सुदोष । भावत हैं तुम पे चढ्यो मगध राइ धरि शेष ||४३|| भुकट-बद्ध नृप संग । करें छिनक में मंग ॥ ४४ ॥ सुख सर्व ॥ ४० ॥ ग्यारह छोहिनि दल सहित मावतं ही तुम गर्व को, } बच कठौर सुनि दूत के मन इंछत मुख बकत है, यो सुनि निकस्य दूत तब · उन्नतता शादवनि की पासि | प्रकासि ॥ ३७॥ चक्रेषा । अपनों देश || ३६ || हि भाइ । भय खाइ ||४२ || बोले पांडव साहि मारि निकासी याहि ॥४५॥ भायो ची तीर । बरनी अधिकहि धीर । ४६ ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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