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कविवर बुलाकीदास
पागे गया और सिंघरथ को बांधकर ले माया । इससे जरासंध बहुत प्रसन्न हुआ। तीर्थकर नेमिनाथ के मागमन को जानकर कुबेर ने इन्द्र की प्राशा से द्वारावती नगरी को बसाया वहां का राजा समुद्रविजय था । उसकी रानी का नाम शिचादेवी था। वह अत्यधिक सुन्दर एवं रूपवती थी। उसने सोलह स्वप्न देखें जिनके फल पूछने वह शीन ही तीर्थकर की माता बनने वाली है ऐसा बतलाया । माता की श्री ह्री वृत्ति मावि सोलह देवियां सेवा करने लगी तथा विभिन्न प्रकार से माता को प्रसन्न रखने लगी। सावन सुदी षष्टी के दिन नेमिनाथ का जन्म झुप्रा । स्वर्ग से इन्द्र ने पाकर तीर्थकर का जन्माभिषेक मनाया । सारे लोक में मानन्द छा गया । तेरहवा प्रमाण
इस प्रभाव में श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मणि हरण एवं विवाह, शिशुपाल वध, प्रद्युम्न जम्म एवं हरण प्रादि की संक्षिप्त कथा के पश्चात फिर कौरव पांडवों की कथा भागे चलती है। दुविर' द्वार भाषा सलामी के. ॥२ रघ सन्तुष्ट नहीं हुये और उन्होंने पूरे राथ्य के १०५ टुकड़े करने पर जोर दिया । इस प्रस्ताव का पाण्डवों ने घोर विरोध किया। कौरबों ने पान्मयों को मारने के लिए सामान बनाया लेकिन उनको कुछ भी सफलता नहीं मिली । सभी पांडवपुत्र पूर्व निर्मित गुप्त मार्ग से निकल गये । पांचों पाण्डव भाव में बैठकर गंगा पार करने लगे । लेकिन बीच में नाव रुक गयी । धीवर में कहा कि गंगा में रहने वाली तुजी देवी नर बलि चाहती है । सब फिर विपत्ति में फंस गये । युधिष्ठर ने अपना बलिवान देना चाहा लेकिन भीम गंगा में कूद पड़ा और तुडी को मार कर उसे अपने वश में कर लिया । मौर अन्त में सभी सकुशल गंगा पार उतर गये । कवि द्वारा पूरा प्रभाव ही रोमाञ्चक ढंग से निबद्ध किया गया है। चौवां प्रभाग
सभी पाण्डव प्रश्चिन्त कैश में कोशिकपुर पहुँचे । वहां से विगपत्तन पहुंचे। वहां के राजा के १. कन्यायें थीं। तथा एक कन्या नगर सेठ के थी, एक निमित्त शानी के अनुसार सभी का विवाह पाण्डवपुत्रों के साथ होना था । इसलिए जब पांडव वहां पहुंचे तो चारों और प्रसन्नता छा गयी एवं सभी ग्यारह कन्यापी का विवाह युधिष्ठर के साथ हो गया।