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________________ कविवर बुलाकीदास १३३ तृतिय प्रभाव में सुलोचना उत्पत्ति, स्वयंबर रचना, जयकुमार के गले में माला डालना, सम्राट भरत के पुत्र प्रकीत्ति द्वारा विरोध एवं जय कुमार के साय युद्ध का अच्छा वर्णन किया गया है । धनुष कान लगि खैचि सुधारे तीरही, तिनके प्रानन तीक्षन प्ररि तन चीरही । वार पार सर निकस उर की भेदि के, केइक मारहिं दंड सुदंडहि छेदि के ॥११।। केइक खरगहि खरग झराझर वीतहीं, परहि मुड कर धरनि इहर नरीतिही। कवच टूटि जब जांहि कचाकच ह्व पर, सूरन के कर शास्त्र सु लरि लरियों मरे ॥१२।। युद्ध में किसी की भी विनय नहीं होने, अर्ककीत्ति के समझाने पर युद्ध की समाप्ति, जयकुमार मुलोचना विवाह एवं भगवान ऋषभदेव के कलाश से निर्वाण होने का वर्णन मिलता है । चतुर्थ प्रभाव में कुरुवंश की उत्पत्ति एवं उस वंश में होने वाले राजानों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है । अनन्तवीर्य राजा के कुरु पुत्र से कुरुवंश की उत्पत्ति मानी गयी है अब भनेत वीरज नपति, राज करघो बहु काल । तिनहीं के सुत कुरु भए, सोभित उर गुनमाल ।।३।। भए चंद कुरु वंस नभ, फुनि उपजे फुरुचंद ! तिनके तनम सुभकरो, नृप गन मैं अरविंद ॥४। इस ही वंश में १६ वे तीर्थकर शांतिनाथ हुए । जो चक्रवत्ति भी थे। उन्हीं का ६ पूर्व भवों का वर्णन इस प्रभाव में किया गया है । तिन पीछे तहां नप भए, विश्वसेन विख्यात । तार्क सुत जिन सांति को, वरनी चरित सुभाति ।।१२।। इसी वर्णन में कन्या का विवाह कैसे घर के साथ करना चाहिये इसका निम्न प्रकार कथन किया है--
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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