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वचन कोश
भाए इन्द्र सकल जूरि तहाँ । प्रभु निर्वान ज्ञान मूर्ति जहो ।। feat महीश्री पूरब रीति । मृनि सों कहें इन्द्र घरि प्रीति ||६|| काहे को मुनि जन श्रम करभो । जोग दिसा क्यों सुधि विसरो ।। सिद्ध सिला निवसें भगवान । काहे को तुम चित्त मलान ॥१०॥ जोग दिसा तजि दो रे जती ।। करें कहा प्रव भाष्यो भंग ॥। ११॥३
।
तब मुनि कहें सुनौ सुरपती
माग्या मिटी भयो व्रत भंग
तब सुरपति जिय सोच अपार । प्रावतु है पंचम अनवार ॥ धर्म रहित परमादी जीव बरसेंगे ता काल सदीव ||१२||
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जो हो इनिसों को प्रकार । पूरी करो जाइ चौमास ||
मति डरयो व्रत मंग जु भयो। तुम प्रभु के हित हो चित्त दय ॥ १३॥ सो पंचम परमादी लोग । संख्या तोरि करेंगे जोग ||
ता ते आज भलो दिन जांनि । श्री गौतम भयो केवल ज्ञांन ।।१४।।
उ करि सब करो बिहार । ज्यों प्रखण्ड व्रत की नहि हार ।। तबसें आहूंठ मास को जोग । पंचम काल घरें मुनि लोग ।।१५।।
बोहरा
वाही निशि भी और को पूर्ज पद निर्वान 1
कथा काष्ट जु संघ की, मार्गे करो बखांन ॥१६॥
इति चतुर्मास भेद लोग वर्णनं
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चौपई
गुप्ता गुप्त माचारज रिष्य 1 भद्रबाहु मुनि तिनि के शिष्य || तिति के पट्ट जु माघनंदि मुनि । ज्यां चरननि में जाइ गुनी ||१७||
उनके पट्टाधीश बखांनि । श्री कुन्दकुन्द श्राचारज जॉन ।। तिनिके पट्ट जु उमास्वाति । जिसतें तत्त्वारथ विख्यात ||१८|| तिनिके पट्ट लोहाचारज भए । जिन काष्ठासंघ निरमये ॥ आचारज विद्या भण्डार । साक्षात खारद श्रवतार ॥१६॥