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________________ बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय "वुधजन" के भजन भी प्रानन्द-दायक है । कषि के प्राध्यात्मिक भन न उनकी वैराग्य भाधना का मूर्तिमान प्रतिबिंध है । भजनों में कवि ने राग-रागिनियों के चुनाव का विशेष ध्यान रखा है । प्रत्येक पद याध्यात्मिक रस से प्रोत-प्रोत है और ध्यान से पढ़ने-सुनने वालों पर वैराग्य की अमिट छाप छोड़े बिना नहीं रहते सच तो यह है कि-कवि ने भजनों के बहाने जैन धर्म की प्रात्मा हो सील कर रख दी है। कविवर बुधजन के ये प्राध्यात्मिक भजन माज भी उतने ही उपयोगी एवं प्रेरणा दायक हैं जितने पूर्वकाल में ये 1 'इस जड़वाद के युग में अाज ऐसे भजनों की उतनी ही मावश्यकता है जितनी रेगिस्तान के प्रवासी को जल की प्रावश्यकता होती है। बुधजन कवि का साहित्य माध्यात्मिक रस से ग्रोत प्रोत है और ध्यान से पढ़ने सुनने वालों पर वैराग्य की अमिट छाप छोड़े बिना नहीं रहता। बुधजन ने मुमुक्ष जगत् का महान उपकार किया है । साहित्य स्वयं एक कला है और उस कला को दूसरी कलानों के अभाव में दबाया नहीं जा सकता। उत्तम साहित्य को पढ़कर हृदम में जो गुद गुदी और अनुभूति होती है, वह बुधजन के पद साहित्य में है।' बुधजन ने मुख्यत: आध्यात्मिक पर लिखे हैं। इन पदों के निर्माण में कवि का एक मात्र लक्ष्य है--मानव का विवेक जागृत हो व वह अपना जीवन नीति पूर्वक व्यतीत करे । कवि के समस्त पद शान मूलक व उदबोधनकारी हैं। इस विषय को स्पष्ट करते हुए जैन मो. राजकुमार लिखते हैं-'कवि के ज्ञान मूलक उद्बोधनकारी पदों की एक विशेषता यह है कि उनमें वस्तुतत्व को प्रतिपादित करने के लिये जो उपमाए अलंकार और प्रतीक लिये गये हैं, उनमें व्यावहारिकता का पुट है। समस्त साहित्यिकता और सरसता को अक्षुण्ण बनाये रखकर भी कवि ने प्रयत्न किया है कि इन पदों की प्राध्यात्मिकता सर्व साधारण के लिये सुलभ हो, इसलिये इनकी अली, अभिव्यंजना और उपमा बड़ी सीधी भोर हुवय ग्राही है । प्रायः प्रत्येक दार्शनिक स्थापना के समर्थन में व्यावहारिक हेतु और उजागर दृष्टान्त प्रस्तुत किये गये हैं 1*2 ___ उदाहरणों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि पदावली की भाषा में विशेषण और संज्ञाए भोकारान्त हैं । इसमें भूतकालिक मोकारान्त क्रियाए, सर्वनाम और परसर्ग के अनेकानेक रूप मिलते हैं जो इनकी रचनाओं को स्पष्टतया ब्रम भाषा से प्रभावित घोषित करते हैं किन्तु यह प्रभाव ही है । पदों की मूल भाषा निश्चय' ही हिन्दी है। १. २. ग. लाल बहादुर शास्त्रीः प्रध्यात्म पद संग्रह को भूमिका, पृ०५। बैन ० राजकुमार : मध्यात्म पक्षापती भाग-२, पृष्ठ १६, भारतीय सामपीठ काशी प्रकाशन, १९६४ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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