SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व afa अपने इष्ट को तनिक भी कष्ट देना नहीं चाहता, वह अपने कार्य को शीघ्र भी करना नहीं चाहता। वह तो यही चाहता है कि उसका कार्य सही रूप से हो जाये । रचना के अवलोकन से लगता है कि यह कवि की श्रेष्ठ रचना है। इसमें उत्तम कवियों की भांति अनुभूतियों का तीव्र व्यंजन्ग है। संसार के प्रत्येक पहलू की व्यंजना बड़ी ही खुशी के साथ की गई है। उन्होंने सूर, तुलसी और मीरा की भांति अपने आराध्य को महान एवं स्वयं को क्षुद्र बताया है। वे लिखते हैं : ५० हे प्रभु पाप तो श्रीनानाथ हो और में दीन एवं अनाथ हूँ । मुझे श्रापका सत्संग प्राप्त हो गया है अतः अब मुझे सम्पन्न एवं सनाथ करने में विलम्ब मल कीजिये ।'1 हे प्रभु ! जगत्-जन तो स्वार्थ में लिप्त हैं । केवल आप ही निःस्वार्थं दिखते हो । अन्य जन पाप - परम्परा की बुद्धि में सहायक है, जबकि श्राप पापों को नाश करने वाले हों । हे प्रभु ! श्राप मेरे अवगुणों पर ध्यान मत दीजिए क्योंकि वे अनंत हैं । श्राप पतित उद्धारक हैं, अतः मुझ जसे पतितों का उद्धार कर दीजिए ।' हे प्रभु ! मेरी कोई भौतिक अभिलाषाएं नहीं हैं, न मैं किसी प्रकार की कोई याचना ही करना चाहता हूं। मैं तो केवल यही चाहता हूं कि अपलक नेत्रों से केवल श्रापकी शान्त, वीतराग नासाग्रदृष्टि, मुद्रा को देखता रहूं सच्ची आत्मसिद्धि की कितनी सरल, ललित व्यास्था इस पथ में है: ।' डा० रामस्वरूप शास्त्री के शब्दों में : 4 एक देखिए जानिये, रमि रहिये इक ठौर | समल- विमल न विचारिये, यह सिद्धि नहि और ४. 'हिन्दी का नीतिकाव्य यद्यापि रचनाओं की संख्या, परिणाम, विषय वैविध्य तुम तो दीनानाथ हो मैं हूँ दीन श्रमाथ । अब तो ढील न कीजिये, भलो मिल गयो साथ || और सकल स्वारथ सगे दिन स्वास्थ हो श्राप । पाप मिटायत श्राप हो, और बढ़ावल पाप ।। मेरे अवगुन जिन गिनी, मैं धागुन को पाम । पतित उद्धारक प्राप हो, करो पतित का काम || एही वर मोहि वीजिये, जाचू नहि कुछ और अनिमिध हम निरखत रहू, शान्त छबी चित-चोर ॥ कवि बुधजनः बुधजन सतसई, पथ सं० ४२,४८,७८, १५ ४० संस्करण सनाव | ५. यही
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy