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बुधजन द्वारा निबद्ध कुतियां एवं उनका परिचय
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प्रतः वह कहता है:
हे प्रभु ! मेरे प्रषगुणों की पोर ध्यान मत दो क्योंकि मेरे अवगुणों की गिनती नहीं है, मैं अवगुणों का धाम हूँ। मैं पवित्र हूँ और आप पतितउद्धारक । मत: मुझ जैसे पतितों का काम बमा दीजिये ।
द्वितीय-सुभाषित खण्ड-में ३०० दोहे हैं । ये सभी दोहे नीति विषयक हैं । लोक मर्यादा के संरक्षण के लिए कवि ने अनेक हितोपदेश की बातें लिखी हैं । कबीर तुलसी, रहीम, और वृन्द के दोहों से इस विभाग के दोहे समानता रखते हैं। इस विभाग के अनेक चोहे नीति के निदर्शन है । यथा
___ "योग्य प्रकार पर योग्य ही वचन बोलना चाहिये। जिस प्रकार पानी यदि सावन, भादों में बरसता है तो उससे सभी को शान्ति मिलती है । जो लोग योग्य अवसर के बिना बोलते हैं उनका मान घटता है, जैसे बादल यठि कार्तिक मास में बरसते हैं तो सभी उनको बुरा कहते हैं, कोई भी उनकी सराहना नहीं करता। इत्यादि
तुतीया-उपवेशाधिकार में 200 दोहे हैं । इस खंड में विविध विषयों का क्रमबद्ध वर्णन है । विद्या-प्रपांसा, मित्रता मोर संगति, जुना-निषेध, शिकार-निन्दा, चोरी-निन्दा, परस्त्री-सम-निषेष पीर्षकों में यह खंड विमानिस है।
__चतुर्थ-विराग भावना-खण्ड में बराग्यवद्धक 202 दोहे हैं । नीतिकाम्प की रष्टि से सुभाषित नीति तथा उपदेशाधिकार ही विशेष महत्वपूर्ण हैं । इस खण्ड में संसार की भसारता का बहुत ही सुन्दर मौर सजीव चित्रण किया मया है । इस खण्ड के सभी दोहे रोचक और मनोहर हैं । सुभाषित नीति में सो विविध-विषपों का प्रायः कोई विशेष क्रम लक्षित नहीं होता, परन्तु उपदेशाधिकार के दोहे विद्या प्रशंसा आदि शीर्षकों में विभाजित है । इसके एक एक दोहे में जीवन को प्रगतिशील बनाने वाले पमूल्म सन्देश मरे है । कतिपय उदाहरण प्रस्तुत है । या-- -- - ४. मेरे भोगुम मिन ; मैं मोगुनको धाम ।
पतित उद्धारक पाप हो, करो पतित को काम । धुषजनः देवानुरागशतक पीर्षक, सुधजन सप्तसई, पद्य सं. ७५, सनावद । प्रोसर परखके बोलिये, प्रथा बोगता धेन । सावन भादों बरसते. सब ही पावै बेन ॥११॥ बोलिजळे मोसर विमा, ताका रहे न मान । जैसे कातिक बरसते, निग्ये सकल महान ॥११॥
बुधजनः बुधजन सतसई (मुभाषित नीति) प. सं. ११६-११७, सनावर 2. बुधजनः बुधमन-सतसई, पब सं० १०८, 125,223 (सनाब)