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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
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भक्त पुनः कहता है- अनादिकाल से यह जीव कर्मों से सम्बन्ध होने के कारण मलिन है तथापि है जिनवाणी चापके प्रसाद से वह मत्यन्त निर्मल हो जाता है और पूर्ण ज्ञानमय हो जाता है ।
८- इष्ट छत्तीसो
जैन कायों में पंच परमेष्ठी का महत्वपूर्ण स्थान है। पंच परमेष्ठियों को ही पंच परमगुरु माना गया है । अरहन्त, सिद्ध, पाचार्य, उपाध्याय और साधु (मुनि) ये पंचपरमेष्ठी हैं । अरहंत को जिन या जिनेन्द्र भी कहते हैं । उनका सौंदर्य प्रेरणा का अक्षय पुंज है। जैन धर्मानुयायी सर्व प्रथम प्रातःकाल उठते ही पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हैं । कविवर बुधजन ने इष्ठ बत्तीसी ग्रन्थ में मंगलाचरण के रूप में अरहन्त की ही भक्ति की है। वे लिखते हैं:
"मैं श्री अरहन्त को प्रणाम करता हूं । दयामय धर्म को नमस्कार करता हूँ तथा निर्ग्रन्थ (परिग्रह रहित ) गुरु ( प्राचार्य, उपाध्याय साधु) को नमस्कार करता हूँ
मंगलाचरण के पश्चात् अरहंत परमेष्ठी के ४६ गुण, सिद्ध परमेष्ठी के प गुण, प्राचार्य परमेष्ठी के ३६ उपाध्याय परमेष्ठी के २५ गुण तथा साधु परमेष्ठी के २८ गुणों का विस्तार से विवेचन किया है ।
ग्रन्थ के अन्त में कवि कहता है कि:
"मैंने यह इटीसी ग्रन्थ साधर्मी जनों के नित्य पठन-पाठन हेतु बनायर है। हित-मित शिवपुर पंथ प्रदाता पंचपरमेष्ठी के गुणों का वर्णन मुझ श्रल्प मति (बुधजन ) द्वारा किया जाता है । 1
यह रचना मुख्यतः सोरठा और दोहा छन्दों में लिखी गई है ।
६ - बुधजन सतसई (वि. सं. १८७६)
यह कविवर बुधजन की लोक प्रिय काव्य रचना है। कविवर बुधजन नीतिकाव्य निर्माता के रूप में हिन्दी जैन साहित्य में ख्याति प्राप्त हैं । जैन रचनाएँ
१- प्रभू श्रीरहंत, दया कथित जिनधर्म को ।
गुरु निरपत्य महंत, और न मानू सर्वदा ||
बुधजन शुषजन विलास (इष्ट छत्तीसी) पाना १३, हस्तलिखित प्रति से। १- साधरमी भव पठन को इष्ट बत्तीसी प्रत्थ ।
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