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कवियर बुधका पक्तित्व एवं कृषि
प्रस्तुत संग्रह में स्थान-स्थान पर अनुप्रास और यमक की झलक भी दिखाई देती है। इस में यद्यपि सभी रचनाएं भाव, भाषा, सन्द, अलंकार प्रादि की रष्टि से उत्तम है परन्तु उन सब में विवेचित रचनाएं बड़ी ही चिन्ताकर्षक आन पड़ती है। कवि अध्यात्म व भक्ति रस के कवि थे अतः उनके कतिपय भक्ति परक पद प्रस्तुत हैं :पद
उत्तम नरभव पापके मति भूले रे रामा टेक॥ कीट पशु का तन जब पाया, तब तू रक्षा निकाया । मग नरदेही पाय सयाने क्यों न भजे प्रभु नामा ॥१॥ सुरपति याकी चाह करत उर, कर पाऊं नर जामा । ऐसा रतन पायके भाई, क्यों खोदत विन फामा २॥ घन जीवन तन सुन्दर पाया, मगन भया ललि भामा । काल प्रचानक झटिके खायगा, परे रहेंगे ठामा ॥३॥ अपने स्वामी के पद-पंकज, करो हिये बिसरामा । मेटि कपट भ्रम अपना बुधजन, ज्यों पावो शिवधामा ॥४॥
इसी प्रकार के एक अन्य पद में कितनी प्रबोध पूर्ण पाणी में कवि कहता है
संसार एक बाजार है और मनुष्य उसका एक व्यापारी है। व्यापारी बाजार में जाता है और सौदा खरीदता है 1 जो व्यापारी सौदे की पारखी होता है वह हमेशा ऐसा सौदा खरीदता है, जिसमें उसे अधिकाधिक लाभ हो । हानि पहुंचाने वाले सौदे का वह स्पर्क भी नहीं करता । परन्तु जिस ब्यापारी को अच्छे-बुरे माल की परख नहीं होती वह खराब सौदा भी खरीद लेता है। फल यह होता है कि वह हानि उठाता है मोर कुशल व्यापारी अपनी व्यापारिक कुशलता के कारण दिन-प्रतिदिन प्रगति करता है मौर व्यापार में पूर्ण सफलता प्राप्त करता हुमा सुख और शान्ति का अनुभव करता है । कविवर बुधजन की दृष्टि में संसार एक बाजार है और उसका प्रत्येक मनुष्य एक व्यापारी है। इस संसार-बाजार में मानव-व्यापारी को सुकृत का सोदा करना है। ऐसा करने पर ही वह अपने जीवन में लाभ उठा सकेगा। जीवन का सास्वत आनन्द ले सकेगा। इसके लिये मानव-व्यापारी को प्रति-अप अपनी विवेक-अखि जागृत रखनी है। उसे अतीत के घाटे के सौदे पर, पर्तमान में सुकृत के सौवे पर और भावी जीवन को परमानन्दमय एवं पूर्ण निराकुल बनाने के लक्ष्य पर
1, बुजमः बुधजन विलास,पद्य संख्या 66, पृ. संख्या 34, जिमवारणी प्रचारक
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