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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय से जखड़ियां लिखी जाती रही है । बुधजन कृत प्रस्तुत जखड़ी में केवल छत्तीस पद्म है।
जखड़ी का अर्थ है जकड़ा हमा। जखड़ी एक प्रकार का सम्बोधन है। हिन्दी के अनेक जैन कवियों ने अपने-अपने ढंग से संसारी जीवों को संबोधित करने के लिए जड़ियों की रचना की । जिनमें भूधरदास, दौलतराम, रूपचव जैसे कवियों के माम . उल्लेखनीय हैं।
"रचना के अन्त में कवि ने अपने नाम, स्थान व गुरु के नाम का उल्लेख किया।
४. छहढाला वि. सं. १८५६
यह रचना कवि की एक मौलिक-कृति है । यह छह बालों में निबद्ध है। सामान्यतः ढाल शव काव्य के लिए रूड़ अर्थ में प्रयोग किया जाता रहा है । जिस प्रकार साहित्य में फागु, विलास, रास प्रादि शब्द प्रचलित रहे हैं, उसी प्रकार ढाल शब्द का भी प्रचलन रहा है। यह माद ध्वन्यथं रूप में रास काव्य की भांति गेय रचना के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा है। छहढाला के अतिरिक्त श्रीपाल काल. मगावती हाल प्रादि काव्य रचनाए भी उल्लेखनीय हैं । इसके प्रत्येक बन्द को पढ़ते समय एक विशेष प्रकार के प्रवाह का अनुभव होता है। इसमो. छन्द की गति मा चाल या ढाल कहते हैं। छहढाला के छह प्रकरणों में से प्रत्येक प्रकरण की अलगअलग छन्दों में रचना की गई है और पूर्ण रचना में छह प्रकार के छन्दों की ढाल (चाल) होने से इसको छहलाला कहा गया है।
कविवर बुधजन की यह रचना धौलतराम की छहवाला का प्रेरणा स्रोत है। ये वे दौलतराम नही है, जिनका उल्लेख प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पद्मपुराण के निर्माता के रूप में किया है। इनका 'छहढाला' नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि
१. नगर भौरासें खड़ी कोनी, सकस भव्यमान भाषनी ।
पास बिहारी (युषजन) विनती गा, मामलेस भुखं पाये जी ।। अषमम : वंदना एखड़ी, पत्र संख्या ३६, हस्तलिखित प्रति रि जन सूरएकरण पास्या मंदिर, जयपुर। २. पाचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, तृतीय संस्करण ।
पृ. संख्या ४११, काशी मागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी वि. सं. २००३ ।