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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
राजनैतिक और धार्मिक यादि स्थितियों का प्रभाव उस देश के साहित्य पर पड़दा है।''1 "इम अर्थ में साहित्व और संस्कृति परस्पर निकट हैं क्योंकि दोनों का उद्देश्य सत्य, चिव तथा सौंदर्य का समन्वय कर मनुष्य को उदात्त भूमिका पर प्रतिष्ठित करना है, सम्यक् दृष्टि प्रदान करना है ।
___ "भारत के इस परिवर्तन के प्रभाव से जैन साहित्यकार अछुते नहीं रहे । वे भी यहां के निवासी थे भौर अपने पड़ोसियों से पृथक् नहीं रह सकते थे। जैन जगत में इस परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वांगीण हुई।" "संत्रहवीं शताब्दी से उप्नीसवीं शताब्दी तक के काल में हिन्दी-जैन-साहित्य-गन में ऐसे कवि नक्षत्रों का उदय हुआ, जिन्होंने अपनी भास्वर-प्रतिमा, ज्ञान-गरिमा एवं अनुराग-विरागात्मक संसार के अनुभवों द्वारा इस साहित्य को अक्षय-निधि से परिपूर्ण किया। महायावि तुलसीदास, केशवदास, सुन्दरदास के समान इन कवियों ने भी अपनी साहित्य-सर्जना द्वारा एक नवीन सूष्टि उत्पन्न की जो भारतीय साहित्य की अक्षम-निधि है ।"4
गद्य एवं पद्य दोनों विशानों में इन शताब्दियों में पर्याप्त साहित्य लिखा गया । कविवर बनारसीदास, रूपचन्द, द्यानतराय, भूघरवास, बुधजन, दौलतराम, भागचन्द जैसे कवि रत्नों ने इस काल में आत्मप्रभावक साहित्य द्वारा मानव समाज का वास्तविक दिशा निर्देशन किया ।
"इस समय तक खंडन-मंडन एवं शास्त्रार्थों की कटुप्रथा से जनता घणा करने लगी थी । उसे धर्म का आडम्बर युक्त रूप अत्यन्त खोखला प्रतीत होने लगा था । मानव अव अपने उद्धार का सरल, युक्ति-संगत एवं निर्विवाद मार्ग पाने के लिए छटपटा रहा था । निश्चय ही इन शताब्दियों में प्राध्यात्मिक संतों-कवियों ने अपना सम्पूरा जीवन, मानव-कल्याण की मौलिक समस्या के सुलझाने में लगा दिया । परिणामस्वरूप सच्चे प्रात्म-स्वरूप की ऐसी पावन स्रोतस्विनी प्रवाहित
१. ज० श्याम सुन्दरदास : हिन्दी साहित्य, प्रथम संस्करण, पृ० २५ । 2. The purpose of culture is to Inbence and intensity once.
plsion of that synthesis of truth and beauty which is the higbese and deepest reality.
J C. Pawys, the meaning of culture. Page 164. ३. जंन कामता प्रसाद : हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ६३ ।
प्र० संस्करण २४७३, भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन । ४. जैन ० रवीन्द्र कुमार : कविवर बनारसीदास जीवनी एवं कृतित्व, पृ० ७५
भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन, १९६६ ।