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________________ २०६ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सुसक सासका असन वर, निरजनवन वर दास । दीन बचन कहिवो न वर, जो लौं तनमैं सांस ।। २४६।। एकाक्षरदातार गुरु, जो न गिनं विनज्ञान । सो चंडाल भषको लहै, तथा होमगा स्वान ।।९४७।। सुख दुःस्त्र करता मान है, यो कुबुद्धिवद्धान । करता तेरे कृतकरम, मैट क्यों न अज्ञान ||२४८।। सुख दुःख विद्या प्रायु धन, कुल बल वित्त अधिकार । साय गर्भमें अवतर, देह घरी जिहि बार ॥२४॥ बन रिपु जल प्रगनि गिरि, रुज निद्रा मद मान । इनमै पुन रक्षा कर, नाहीं रक्षक प्रान ॥२५॥ दुराचारि तिय कलहिनी, किंकर कुर कठोर । सरस साय बसिबो सदन, मृत समान दःख घोर ॥२५१।। संपति नरभव ना रहै, रहै दोषगुनचात । रहै जु बनमै बासना, फूल फूल झरि जात ॥२५२।। एक त्यागि कुल राखिये, माम राखि कुल तोरि ।। ग्राम त्यागिवे राजहित, धर्म राख सब छोरि १२५३॥ नहि विद्या नहि मित्रता, नाहीं धन सनमान ।। नहीं न्याय नहिं लाज भय, तजो वास ता थान ॥२५४।। किंकर जी कारज कर, बांधव जो दुःख साथ । नारी जो दारिद सहै, प्रतिपालं सौ नाथ ।।२५५।। नदी नखी गीनिमें, स्पानि नर नारि । बालक पर राजान विंग, बसिये जतन विचार ॥२५६|| कामीको कामिनि मिलन, विभवमाहि रुचिदान । भोजशक्ति भोजन विविध, तप अत्यन्त फल जान ।।२५७।। किकर हुकमी सुत विबुध, तिय अनुगामिनि जास । विभव सदन नहि रोग तन ये ही सुरगनिवास ।।२५८।। पुत्र बहे पितुभक्त जो, पिता यह प्रतिपाल । नारि वहै जो पतिव्रता, मित्र वहे दिल माल ॥२५६।। जो हंसता पानी पिये, चलता खावं खान ।। हूँ बतरावत जात जो, सो सठ ढीट प्रजान ॥२६०।। तेता प्रारंभ ठानिये, जेता तन मै जोर । तेना पांच पमारिय. जेती लांबी सोर ।।२६१।।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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