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________________ कविवर चुमलत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व भाव से परिस्थितियों से समन्वय' किया तथा भक्तिपरक जीवन की मोर अग्रसर हुप्रा ।। कविवर बुधजन जयपुर के निवासी थे । मत: उनकी समस्त रचनाओं में हूढारी भाषा का प्राधान्य है । कवि की १४ रचनाएं अभी तक उपलब्ध हो सकी हैं। उनकी सभी रचनाएं भाव और भाषा की दृष्टि से उपादेय हैं। कवि बाह्य संसार से अनासक्त प्रतीत होते हैं । ऐसा लगता है साहित्य रचना करते समय कवि ने अन्तर्मन से अधिक प्रेरणा प्राप्त की है। चम-चक्षुषों की अपेक्षा कवि के मानसचक्षु अधिक उबुद्ध प्रतीत होते हैं। आत्मानुभूति का परिचय ही विशेष रूप से दिखाई देता है । ऐग लगता है कि कवि ने प्रात्म-शान्ति की प्राप्ति के लिये ही रचनाएं की हैं। कवि हिन्दी साहित्य में अध्यात्म स्रष्टा के रूप में प्रकट हुपा है। जहां हम प्रन्यान्य प्रकार की रचनामों को महत्व देते हैं, वहां हमें इन प्रध्यात्म स्रष्टा कलाकारों की रचनामों को भी महत्व प्रदान करना होगा। हमें यह स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं होता कि बुधजन जैसे जैन कवियों के साहित्य के अध्ययन और स्वाध्याय से कुछ समय के लिये सांसारिक विषमतामों को भूलाया जा सकता है। पाठक के समक्ष प्रादर्थ का ऐसा मनोरम चित्र उपस्थित होता है जिससे वह अपनी कुत्सित वृत्तियों से जीवन को परिष्कृत करने के लिये दृढ़ संकल्प कर लेता है । जीवन को परिष्कृत करने की जितनी क्षमता जन साहित्य में है, उतनी लोकग्राही शक्ति भी विद्यमान है। साहित्य मानव मात्र की सौंदर्य विपासा, चारित्रिक उत्थान एवं जीवन-निर्माण के करने में उपादेय है। जन साहित्य स्रप्टानों ने अखंड चैतन्य प्रानन्द रूप प्रात्मा का अपने अन्तस में साक्षात्कार किया और साहित्य में उसी की अनुभूति को मूर्तरूप प्रदान कर सौंदर्य के शास्वत प्रकाश की रेस्त्रामों द्वारा वाणी का चित्र नकित किया है । जिस जैन समाज पर ऐसे ऋवियों के साहित्य को प्रकाश में लाने का उत्तर-दायित्व है । वे इस योर सचेष्ट प्रतीत नहीं होते । इससे भी अधिक परिताप का विषय यह है कि हिन्दी साहित्य के विकास में जिनका पर्याप्त योगदान रहा है । ऐसे कविवर वनारसीदास, पानतराय, दौलतराम, भूधरदास, भागचन्द, बुधजन आदि के विषय में हिन्दी के साहित्यकार भी मौन हैं । इनमें से अधिकतर वावियों का हिन्दी साहित्य के इतिहास में नामोल्लस्त्र तक नहीं है । बुधजन भी एक ऐसे कवि हैं, जिनका हिन्दी साहित्य के इतिहास में उल्लेख नहीं है। किन्तु इनकी "सतसई" एक अमर रचना है जो हिन्दी को दीर्घ परंपराओं को सहेजे हुए हैं। उसमें लोक की रीति-नीतियों का जो वर्णन किया गया है, यह अनपम है । उसी को लक्ष्यकर संभवतः कहा गया है कि 'जैन साहित्य की विशेषता १. सुखदेव मिथ हिन्दी साहित्य का प्रभाव, पृ० १६३-६४ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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