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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि रड छन्द में भी कवि ने कितने ही पर लिखे हैं। यह वस्तुबंध छन्द के समान है और किसी-किसी पाण्डुलिपि में तो रड़ के स्थान का वस्तुबंध नाम भी दिया है । इसी तरह मडिल्ल छन्द का भी पर्याप्त प्रयोग हुआ है। यह चौपई छन्द से मिलता जुलता छन्द है । रंगिका अन्द पें माठ चरस्प होते हैं और यह सबसे बड़ा छन्द है । कविवर बूचराज ने इस छन्द का 'मयणजुज्झ' एवं 'सन्तोष जयतिलकु' हन दोनों में ही प्रयोग किया है। . कषि ने मयणजुज्झ एवं पन्य कृतियों में गाथा छन्द का भी खूब प्रयोग किया है। एक गाथा निम्न प्रकार है ए जित्ति चित्त खिल्लउ, भायज प्रानंदि घरह वारे । उटू उटू चंचल वयरिण, प्रान्तउ बेगि उत्तारउ ।।५।। १५६ १५८ पाण्डुलिपि परिचय मयणजुज्झ की राजस्थान के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में निम्न पापलिपियां उपलब्ध होती हैं: १. भामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर पत्र संख्या लेखन काल पद्य संख्या (महावीर भवन के संग्रह में) २४ गुटका सं० ४६ वेष्टन सं० २८७ २. भट्टारकीय शास्त्र भण्डार, अजमेर २० संवत् १६१६ ३. शास्त्र भण्डार दि. जैन ठोलियान, सवत् १७१२ जयपुर ४, शास्त्र भण्डार दि. जैन ४१ बड़ा मन्दिर, जयपुर (गुटका सं० ५ वेष्टन सं० २६६४) ५. शास्त्र भण्डार मागधी मन्दिर, २२ बूदी ६. शास्त्र भण्डार दि. जैन मन्दिर, दीवान जो काभा (भरतपुर)
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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