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कविवर बूचराज
विषय प्रतिपादन
बूचराज जैन सा थे इसलिए उनके जीवन के दो ही उद्देश्य थे । प्रथम अपना प्रात्म विकास द्वितीय प्रपने भक्तों को सही मार्ग का निर्देशन | वे स्वयं जिनधर्म के अनुयायी थे इसलिए उन्होंने पहिले अपने जीवन को सुधारा फिर जनता को काव्यों के माध्यम से तथा उपदेशों से बुराइयों से बचने का उपदेश दिया | उनके समय में देश की राजनीति अस्थिर थी। हिन्दुओं एवं जैनों पर भीषण अत्याचार होते थे। यहां के निवासियो का स पहुंचाना मुस्लिम शासकों का प्रमुख काम था । तत्कालीन मुस्लिम शासक विषयान्ध थे। उन्हों के समान यहां के राजपूत शासक भी हो गये थे । महाराजा पृथ्वीराज की वासना पूर्ति के लिए इस देश को गुलाम बनना पड़ा। मुहम्मद खिलजी ने अपनी वासना पूर्ति के लिए लाखों निरपराधियों का संहार किया ।
कविवर खुबराज ने ब्रह्मचारी का पद ग्रहण करके सबसे पहले काम वासना पर विजय प्राप्न की तथा साधु वेष धारण कर ब्रह्मवारी का जीवन बिताने लगे। काम से अपने आप का पिण्ड छुड़ाया । इसलिए सर्वप्रथम कवि ने 'मयणबुज्झ' नामक एक रूपक काव्य लिख कर तत्कालीन वासनामय वातावरण के विरुद्ध प्रपनी लेखनी उठायी। यद्यपि उनके काध में कहीं किसी शासक अथवा उनकी वासना विषयक कमजोरियों का नामोल्लेख नहीं है । लेकिन कृति तत्कालीन सामाजिक दुर्बलतानों के लिए एक खुली पुस्तक है। १६ वीं शताब्दी मथवा इसके पूर्व नारियों को लेकर जो युद्ध होते थे वे सब देश एवं समाज के लिए कलक थे। इनसे नारी समाज का मनोबल तो गिर ही चुका था उनमें प्रशिक्षा एवं पर्दा प्रथा ने भी घर कर लिया था। काम वासना से अन्धी पुरुष समाज' अपना विवेक खो बैठा था । पौर पशु के समान प्रापरण करने लगा था। कवि ने 'मदन युद्ध' रूपक काव्य में काम वासना पूर्ति के लिए जिन-जिन बुराइयों को अपनाना पड़ता है उनका बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।
कवि ने अपनी दूसरी कृति सन्तोषजयतिलक में 'लोभ' रूपी बुराई पर करारी चोट की है । इस पूरे रूपक काव्य में लोभ के साथ-साथ अन्य कौन-कौन सी बुराई घर कर जाती है उनका विस्तृत वर्णन किया है । लोभ पर विजय पाना सरल काम नहीं है । बड़े-बड़े राजा महाराजा साधु महात्मा भी लोभ के चंगुल में फंसे रहते हैं इसलिए कवि ने कहा है
दुसब लोमु काया गढ़ अंतरि, रयरिण दिवस मंतवद निरंतरि । करइ बीठू प्रयागु वलु मंडइ, लज्या न्यातु सील कुल खंडह ।।