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________________ १६ कविचर बूचराज की अपेक्षा लड़ना उचित समझा। मदन सब देशों पर विजय प्राप्त करके स्वच्छन्द विश्वरने लगा । नट व माट उसकी जय जयकार कर रहे थे । विशाल एवं गंधर्व गीत गा रहे ये । कामदेव जब विजय प्राप्त करके लौटा तो उसका मच्छा स्वागत हुआ। रति ने भी कामदेव का खूब स्वागत किया और उसको विजय पर बधाई दी। लेकिन साथ में यह भी प्रश्न किया कि उसने कौन-कौन से देश पर विजय प्राप्त की है । इस पर कामदेव ने निम्न प्रकार उत्तर दिया जिरिंग संकम इंदु हरि बंभु वासिन्य पयानि जिसु । इंद्र चंदु गगरण तारायण विद्याधर यक्ष सुगंधब्व सहि देव गरम इण । जोगी जंगम कापडी सन्यासी रस छंदि ले ले तपु वण महि दुढिय ते मई घाले बंदि ॥ ६२ ॥ रति ने अपने पति कामदेव की प्रशंसा करते हुए कहा कि धर्मपुरी को प्रभी और जीतना है जहाँ भगवान का ऋषभदेव का साम्राज्य है। रति की बात सुनकर कामदेव को बहुत क्रोध प्राया धौर वह तत्काल धर्मपुरी को विजय करने के लिए चल पड़ा । उसने प्रादीश्वर को शीघ्र ही वश में करने की घोषणा की। कामदेव ने अपने साथी क्रोध, मोह, मान एवं माया सभी को साथ लिया और धर्मपुरी पर आक्रमण कर दिया। श्रपने विपुल हावभाव एव विलास रूपी शस्त्रों से उन्हें जीतने का उपक्रम किया । दोनों प्रोर युद्ध के लिए खूब तैयारी की गयी तथा एक ओर सभी विकारों ने ऋषभदेव के गुणों पर आक्रमण कर दिया। प्रज्ञान ने ज्ञान को पछाड़ने का उपक्रम किया। मिध्यात्व जैसे सुभट ने पूरे वेग से आक्रमण किया। लेकिन सम्यक्त्व रूपी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत से मिथ्यात्व का सामना किया । जैसे सूर्य को देखकर अन्धकार छिप जाता है उसी प्रकार मिथ्यात्व भी सम्यकत्व के सामने नहीं टिक सका। राग ने गरज कर अपना ग्रस्त्र चलाया लेकिन वैराग्य ने इसके भार को बेकार कर दिया । मद ने अपने माठ साथियों के साथ ऋषभदेव पर एकसाथ प्राक्रमण किया लेकिन ऋषभदेव ने उन्हें मार्दव धर्म से सहज ही में जीत लिया। इसके पश्चात् माया ने अपना जाल फेंका और बाईस परिषहों ने एक साथ पाक्रमण किया । लेकिन ऋषभदेव ने माया को म्रार्जव से तथा बाईस परिषदों को अपने 'धीरज' सुभट से सहज ही में जीत लिया। इसके पश्चात् 'कलह' ने पूरे वेग से अपना अधिकार जमाना चाहा लेकिन क्षमा के सामने वह भी भाग गया। जब नहीं चला और वह मुख फेर कर चल विजय प्राप्त करना चाहा। उसका बढ़ता और कभी पीछे हट जाता। मोह का कोई वश दिया तो लोभ ने अपनी पूरी सामर्थ्य से प्रभाव सारे विश्व में व्याप्त है, कभी वह बागे लेकिन जब सन्तोष ने पूरे वेग से प्रत्याक्रमण किया तो व ठहर नहीं सका | कुशील पर ब्रह्मचर्य ने विजय प्राप्त की ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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