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________________ २५६ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि तहु मेहमालय क पयासि इण कियइ केरा फलु लद्ध, भासि | इह कर लिय चिकि सहसति तु करि पढडिया बंध मिल । ता विहसि वि जंप घेल्हणंदु, जो धम्म कहा कणि अमंदु | मोमित्त ! म बुझि वायर न म गुणियउ गुणालु कोवद्दम दीठउ र रसालु । जो हर* जब तण तण दोसु, सो सब सुणियउ तिय सकोस । क कण बुषण सहि मज्भु, किहकार रंजायमि चित्त तुषभ ।। हियत्, कह कमि कम बुझा प्रत्यु | अन्तिम भाग - मंडी निरु लेखि सुत्तयं करी कह एह महा पवित्तयं । उरणग्गलं जंपय मत्त जंपिया, खमेव तं देवी मारही मया । ता माल्हा कुल-कमलु दिवायरु, अजमेराह वंसि मय सायय । विरणयं सज्जण जरामरण रंजणु दाणि दुहिया उल-भं जर || मयरद्धय सम सरिसु वि, परयरण पुरह मज्झि मह पुरि सुवि । जिण गुण म्हि पयमत्त वि. तोरण पंडिय कवियण चित्त वि वृच्छय वयण सयल परिपालगु, बंधव तिय सहयर सुयतालगु । एलीतिय मण रुहवल सोहरणु, मल्लिदास यात मग्गु मोह | तिपि सेवइ सुन्दरि यह कह सुरिण, सरिसु बउलीमउ सु दिढुं मणि । पुतोहात परमत्यें, कह सुणि वजली योसिर हस्यें ? पुरावि पहाडियाह वरवंसवि, लद्धोसयल गपरि सुपसंसदि । ओला नवल जिगभरों, ताल्हू वढलो यो विसं पुणु पारस तण वीरें, गहिउ सुबज जइ सहजस धीरें। पुणु वाकुलीयवाल सुविसालुवि, बालू वडी यो धरमालुदि । पुणु कह मुश्पिवि ठकुरसी संवरि मिस भावरा भाई मति । पुणु पासी गरि मुल्लणि लीयउ वड जीउ रिथ भय डुल्लएि । पुरणु कह सुणिवि मोहर गारिहि मवरहि भव्य यर णरणारहि । मेघमालावर चंगज महिय, इंछित फलु लहि सहि कवि करियल । चंपावतीव गरि शिवसंते, रामचन्वषहु रज्जु करते । हावसानु महति महते, पहाचन्द गुरु उवएसंते । परणवह सहजि सीवे प्रगल सावरण मामि जट लिय मंगल । पय पहाड़िए वंससिरोमरिण, घेल्हा गर तसु लिय वर घर मिरिण । तह तह कवि ठाकुर सुंदरि, यह कहि किय संभव जिन मंदिर | ·
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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