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________________ २४८ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि ४. चिन्तामणि जयमाल प्रस्तुत जयमाल १९ पद्यों की लघु कृति है जिसमें पार्श्वनाथ का स्तवन एवं उनकी भक्ति के प्रभाव से घटित घटनाओं का उल्लेख किया गया है । जिनेन्द्र स्वामी की भक्ति से मानव अथाह समुद्र को तैर कर पार कर सकता है, सूली फूलों की माला बन सकती है और न जाने क्या क्या विपक्षियों से वह बच सकता है । जयमाल की भाषा प्रपत्र मिश्रित हिन्दी है । कवि ने अन्त में घपना नामोल्लेख निम्न प्रकार किया है इह वर जयमाल गुरगढ़ विसाला, सेल्ह सतनु ठाकुर कहए । जो रु सिरिग सिरक्कइ दिरिए दिणि अक्खइ सो सुक्ष्मण बंछिउ लहए । प्रस्तुत जयमाल की प्रति जयपुर के गोधों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के ५१ वें गुटके में पृष्ठ २०२२ तत ५. कृपरण छन्द कविवर ठकुरसी का कृपरण छन्द लौकिक जीवन के आधार पर निबद्ध कृति है । छोहल कवि ने पंच सहेली गीत लिखकर जहाँ एक ओर पति वियोग एवं पति मिलन में नवयुवतियों की मनोदशा का चित्रण किया था वहाँ कवि ठक्कुरसी ने कृपण छन्द लिखकर उस व्यक्ति का चित्रण किया है जो उसके संघय में ही विश्वास करता है और उसका उपयोग जीवन के अन्तिम क्षण तक नहीं करता । कृपण छन् का नाम कहीं कृपण चरित्र भी मिलता है। यह कवि श्री संवत् १५८० के पोष मास में निबद्ध रचना है। रचना एकदम सरस, चिकर एवं प्रसाद गुण से भरपूर है। इसमें ३५ पद्य हैं। जो षट्पद छन्द में निबद्ध है । इस कृति की एक पाण्डुलिपि जयतुर और एक मट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर में संग्रहीत । प्रजमेर बाली पाण्डुलिपि में तो कृति का ही नाम कृपण षट्पद दिया हुआ है। कृति की संक्षिप्त कथा निम्न प्रकार है एक प्रसिद्ध कुपण व्यक्ति उसी नगर में अर्थात् चम्पावती में ही रहता था और वहीं कविवर ठक्कुरसी भी रहते थे। वह जितना अधिक कृष्ण था उसकी पत्नी उतनी ही अधिक उबार एवं विदुषी श्री । क्रिप एक परसिद्ध नयरि निवसति निलक्षणु । कही करम संजोग वासु धरि मारि विखण
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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