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________________ यशोधर चौपई देवी के लिए जीवों को पकड़ कर लाना इतनी करहू हमारी काजू, देविहि बलि अघ वाबहू प्राजु । राय वयनु सुनि धाए परे, वन मो जीव जाय पाकरे ।।४७|| हरिण रोझहू सूकर सिवसान, महिस्त मेस छेरे लवकाना । फुजर सीह बाघ फरिण नोरथा, लारी प्रादि गर्न को औरा ॥४८।। जेते जीव पिषे सब अंषि, लए तितर करि पसु पंषि । फुनि कर योरि पचासहि सेवा, हस नर युयल्लु न पायो देवा ।। ४६ सव नर वे प्रवरा निसो कही, मनुब युवलु विनु पूजा रहो । नेरी कायु सबारह एह, मनुव जुबलु गहि देवेहि देहूँ ।।५।। निसु दिनु रहे हिस मति भई, चंड कम्में कर्कश निहई । दस दिसि गए राय उपदेस, म विहार वन फिरहि असेस ।।५।। सुरत्त मुनि का बिहार--- निसुन१ भम्व फहंतह प्रानु, दया धर्म गुरपसील पहानु । तहि पयसरि सुक्त मुनि सूर, कर्म पडिष्यो कीनी चूरि ॥५२॥ मुद्रा नगन कमंडर हाथ, बहुत रिषीश्वर ताके साथ । भवंतु सदतु सो तीरथ तान, पेप्यो तिवनु केवल नान ||५३।। तिहि नयरी प्रायो मुनि नाह, जा सिवरमनि रमन को गाइ । भब्ब कुमु पडियोहन चंदु, नाय नरिंद पुरंदर बंदु ॥५४॥ लोक ताम मुनिवरु पत्त तव तत गुण जुत्त संजमतिलउ । कोह-लोह-मय-मोहवत्तउ, बहु मुनिवर परिवः । सील जलहि सिवरमनि रन्नड, तव कंम्मा सबै संवरण । भन्न सरोरुह मित्त , अंबरहीनु प्रनंग हरू निम्मल सुचरित, ।। ५५|| जहि णंदन वनु नरखें तनो, दल फल पल्लव दीस घनौ । जाहि वसंत फूली फुलाबाद, कोइल मधुरौ सादु कराइ ११५६।। भु चुमु संति पंवो सुक मोर, मुरकामिनि मोहै सुनि घोर । पत्र मासु सुदि णवलु वसंतु, गुजारे मधुकरु मम मनु ॥५७।। भने रिषीसुर वनु अवलोइ, इहि ठा मुनि थिरु ध्यानु न होइ । इहि पण केम जतोसुर बसै, निवसत मयनु भुजंगमु इस ॥५८।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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