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यशोधर चौपई
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तो कहमि तिनके पालामि, वाह धम्मु जाइ तमु भागि । बार बार पनविधि जिन राउ, सरसै सामि तिसु मुर पसाउ ॥२२॥ गाथा पजिय पागम सुत्त मंतिम तित्थयर चीर समसरणं । गरिए गोयमेण भपियं, णिमुनिम सिरिसेणि एन कह बिमलं ॥२३।। वीरवानि सूनि गोयम मनी, प्रगटी कथा जसोधर तनी 1
सुनि श्रेषिक प्रगटी कलिमाह, मारव भने तासु की छाह ।।२।। कथा का प्रारम्भ----
जंबूदीपू सुदंसनु मेर, लवनोदधि वेठयों चहुफेर । भरह षेतु दाहिनि दिसि घस, पेषत मनु सुर बेको लस ॥२५॥ रायगेह पाटन सुभ ठौर, जा सम महियलि मयर ण मोर ।
पंच वरण मनि दीस पच्यो, सोमहि तनौ तिलह विहि न्यौ ।।२६।। मारिदत राजा---
चारि परि सतषने प्रवासा, बन उपधन सरबर 'पोपासा । तहि पुर मारिपत्त महिपाल, सूरज तेजु दुवउ रसानु |॥२७॥ जौवनवंसु राजमव भस्यो, अति प्रचंडु महियलि अवतरयो । सपिनि नाम गेह बर पारि, प्रति सरूप रंभा उनहारि ।।२८।। कोक कला संगीत निवास, घेवहि अगर कुसम रसवास ।
ता समेतु मान बहु भोयु, निसुनह पवरू कथा को योगु ॥२६।। भैरवामन्त का आगमन
योगी एकु तहा प्रवधूतु. राज गेह पुर माह पहूतु । भस्म बनाइ मुद्रा कान, अनही वझे कहै कहान |॥३०॥ दोरह जटा चढ़ाए भंग, नयन घुला वंदन रंग । गौर वरण मनी पून्यो चंदु. प्रगट्यो नाम भैरवानंदु ।।३।। काहू जाय राइ सौ कहो, जोगी एकु नगर मौ रह्यो । संत्र मंत्र जान बहुमाइ, जोगी गुन गरुवो सुनि राइ ।।३२॥ राजा भन जाह ता पासि, ले प्राबह बह विनउ पयासि । जो किंकर नरवे पठायो, पवन वे जोपहु गयो ।।३३।। पमनै स्वामी करहु पसाउ, अंग चला जुला राज । प्राईवर सो जोगी चल्यो, कोतिग सोग नगर को मिल्यो ।।३४।।