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श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी जयपुर,
एक परिचय
जैन कवियों द्वारा हिन्दी भाषा में निबद्ध कृतियों के प्रकाशन एवं उनके मूल्यांकन की प्राज अतीव भावश्यकता है। देश के विश्व विद्यालयों एवं शोध संस्थानों में जैन हिन्दी साहित्य को लेकर जो शोध कार्य हो रहा है तथा शोधाथियों में उस पर शोध कार्य की मोर जो झाँच जाग्रत हुई है वह भाप उत्साहवर्धक है लेकिन अभी तक हिन्दी साहित्य के इतिहास में जन कवियों को नाम मात्र का भी स्थान प्राप्त नहीं हो सका है और हमारे अधिकांश कवि प्रजात एवं अपरिचित ही बने हुए है। अभी तक जैन कवियों की कृतियां ग्रन्थागारों में बन्द हैं सथा राजस्थान के मास्त्र भण्डारों को छोड़कर अन्य प्रदेशों के भण्डारों के तो सूची पत्र भी प्रकाशित नहीं हुए हैं । देश की किसी भी प्रकाशन संस्था का इस ओर ध्यान नहीं गया और न कभी ऐसी किसी योजना को मूर्त रूप दिये जाने का संकल्प ही व्यक्त किया गया। क्योंकि अधिकांश विद्वानों एवं साहित्यकारों को हिन्दी जैन साहित्य की विशालता की ही जानकारी प्राप्त नहीं है।
स्थापना- इसलिए सन् १९७६ वर्ष के अन्तिम महिनों में जयपुर के विद्वान मित्रों के सहयोग से 'श्री महावीर अन्य प्रकादमी' संस्था की स्थापना की गयी जिसका प्रमुख उद्देश्य पञ्चवर्षीय योजना बनाकर समस्त हिन्दी चन साहित्य को २० भागों में प्रकाशित करने का निश्चय किया गया। इन भागों में ६० से अधिक प्रमुख जैन काबयों का विस्तृत जीवन परिचय, उनकी कृतियों का मूल्यांकन एवं प्रकासन का निर्णय लिया गया । हिन्दी अन साहित्य प्रकाशन योजना के अन्तर्गन निम्न प्रकार २० भाग प्रकाशित किये जायेंगेप्रकाशन योजना :
१. महाकवि मा रायमल्ल एयं भट्टारक त्रिमुवनकीति (प्रकाशित) २. फबिबर बृजराज ए उनके समकालीन कवि (प्रकाशित) ३. महाकवि ब्रह्म जिनदास एक भ० प्रतापकीर्ति (प्रकाशनाधीन) ४. बिबर बीरचन्द एवं महिवन्द ५. विद्याभूषण, शानसागर एवं जिनदास पाण्डे ६. ब्रह्म यशोधर एवं भट्टारक ज्ञानभूषण ७. भट्टारक रलकीत्ति, कुमुदचन्द एवं समयसुन्दर ८. कवियर रूपचन्द, जपजीवन एणं ब्रह्म कपूरचन्द