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________________ कविवर बूचराज धर्मदास, पूनो जैसे और भी प्रसिद्ध जैन कवि हुए, जिन्होंने हिन्दी भाषा में कितनी हो रचनाएँ निबद्ध की और उसके प्रचार प्रसार में अपना पूर्ण योग दिया। जैन झवि किसी काल विशेष की धारा में नहीं बहे । वे जनरूचि के अनुसार हिन्दी में काव्य रचना करते रहे । प्रारम्भ में उन्होंने रास काय लिखे । रास काव्य लिखने की यह परम्परा अधिच्छिन्न रूप से १७ वीं शताब्दी तक चलती रही। १६ वीं शताब्दी के प्रथम चरण के पूर्वाद्ध तक महाकवि ब्रह्म जिनदास अकेले ने पचास से भी अधिक रासकाव्यों की रचना करके एक नया कीत्तिमान स्थापित किया । जन कवि रास काव्यों के अतिरिक्त फागु, वेलि एवं चरित काम भी लिखते रहे । संवत् १३५४ में लिखित जिणदत्त चरित तथा सवत् १४११ में निबद्ध प्रद्य म्न परित जैसे काव्य इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। संवत् १५६० से १६०० तक का ४० वर्षों का काल लघु काव्यों की स्त्रनामों का काल रहा । इन वर्षों में होने वाले बूचराम, छोल, ठक्कुरसी, चतुरु एवं गारवदास सभी ने छोटे-छोटे काम्य लिखकर जन सामान्य में हिन्दी भाषा के प्रति रचि जामृत की। इन वर्षों के जैन कवि दोनों ही वर्ग के रहे । यदि भट्टारक ज्ञानभूषण शुभचन्द्र, बूचराजः यशोधर एवं सहजसुन्दर सन्त थे तो छोहल, ठक्कुरसी, चतुरु जैसे कवि था । सभी कादि : में बझे म्होंने गा तो उपदेशात्मक काव्य लिखे, नेमिराजुल से सम्बन्धित विरहात्मक बारहमासा लिख्खे या फिर रूपक काव्य एवं संवादात्मक काव्य लिखे। उन्होंने मानव की बुराइयों की मोर सबका ध्यान भाकुष्ट किया । बानियों के माध्यम से विविध विषयों की उनमें चर्चा की। ब्रह्मपि इन ४० वर्षों में सगुण भक्ति धारा का अधिक जोर वा पौर उत्तर भारत में उसने घर-घर में अपने पांव जमा लिए ये 1 लेफिन प्रभी जैन कवि उससे अछूते ही थे । उन्होंने पब लिखना तो प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन तीर्थंकर भक्ति में थे इतने अधिक प्रवेश नहीं कर पाये थे । इसलिए इन वर्षों में भक्ति साहित्य अधिक नहीं लिखा जा सका । फिर भी चालीस वर्षों में खूब राज, ठक्करसी, छीहल जैसे श्रेष्ठ कवि हए । जिन्होंने मपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य में प्रपना स्थान बनाये रखा तथा मागे पाने वाले कवियों के लिए मार्ग दर्शन का कार्य किया। प्रस्तुत भाग में ब्रह्म युवराज, छोहल, कुरसी, चतुरु एवं गारवदास का जीवन परिचय, मूल्यांकन एवं उनके काध्य पाठ दिये जा रहे है। इसलिए उक्त कवियों के अतिरिक्त अवशिष्ट जैन कषियों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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