SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बूच राज एवं उनके समकालीन कवि ५. वैराग्य गीत ऊपर उदक मैं दश मास रह्यो, पडिवि धोमुखि बहु संकटु सह्यो । कह सहित संकटु उदर अंतरि, चितवं चिता घगी। ऊबरो अबकी बार जेहों, भगति करिस्यों जिण तणी । ए बोल संकट पडं बोले, बहुडी जगि जामण भयो । संसार का जम भूवालि लागी, मूड तव वीसरि गयो ॥१॥ बालक विकह प्रचेत...''''भक्षि अमक्षि ण कछु अंतरु लहै । लहै ना भक्षि अभक्षि अंतर, लाल मुखि अरिल चुदै । पडइ लोट परणि उपरु, रोइ करि अमृत पिवाद । तनु मूत विष्टा रहै वोयो, सुकृत ना कायौ कियो । वीसरयो जिन भक्ति प्राणी, बाल पणो ह्यो हा गयो ।।२।। जोवनि मातो नर बहु दिशि भव, परधन परतीय परि मनु रचे । रचे परधनु देखि परताय, चित्त आइल राखए । छां पनीफल सेव जिनकी. विषय विष फल भाखए । काम माया मोह व्याप्यो प्रमत हम विसार । पूजइन जिएवर स्वामि क्वरो, अधिरथा जोबन गालए ।।३।। जरा बुढापा वरी पाइयो सुधि बुधि नाडो तब पछिताइयो। पछिताझ्यो तव सुद्धि नाढी, सयण जगतु न बूझए । जियन कारणि करै लालच नयन जगत न सूझए । मनु कह छोहल सुरसहि रे मन भरमि भूलो कार फिरै । करि सेव जिणवर मति सेती, जो भव समुद दूतरू तिरं ॥४॥ गुटका संख्या ६५, पाटोदी का मन्दिर जयपुर । 000 १. श्रवण संबद न बूझए । २. अन कहा छोहल सुलो २ नर श्रमि भूलि काई फिर । करि भगति जिनको सुगति स्यो त्यो मुति लीलब बदौ ।।४।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy