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________________ ' (xi) राजस्थानी भाषा की कृतियां हैं । कमि की ७ रचनामों के नाम तो प्रथम बार सुनने को मिलेंगे । कवि की पञ्चेन्द्रिय वेलि, नेमिराजमति वेलि एवं कुपण अन्द, पाश्वनाथ सकुन सत्तावीसी, सप्त व्यसन वेलि बहुत ही लोकप्रिय रचनाएँ हैं ! __उक्त पांच प्रतिनिधि कवियों के अतिरिक्त संवत् १५६१ से १६०० तक होने चाले कविवर विमलमूत्ति, मेलिग, पं० धर्मदास, भ. शुभचन्द्र, प्रह्म यशोधर, ईश्वर सूरि, बालबन्द, राजहंस उपाध्याय, धर्मसमुद्र, सहजसुन्दर, पाश्र्वचन्द्र सूरि, भक्तिलाभ एवं विनय समुद्र का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इग प्रकार ४० वर्षों में देश में करीब १८ जन कवि हुए जिन्होंने जैन साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की। इस प्रकार TTE पुरुप में गांग मागिनों रिपचजो कृतियों का मूल्यांकन एवं उनकी कृतियों के पूरे पाठ दिये गये हैं जिनकी संख्या ४४ है। ये सभी रचमाएँ भाषा एवं शैली की दृष्टि से अपने समय की प्रमुख रचनाएँ हैं जिनमें सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक सभी पक्षों के दर्शन होते हैं । सामाजिक कृतियों में 'पञ्च सहेली गीत', 'अयण जुज्झ', "सन्तोष जयतिलकू', 'सप्त व्यसन वेलि' के नाम उल्लेखनीय हैं जिनमें तत्कालीन समाज की दशा कर सजीव वर्णन किया गया है । 'कृष्ण छन्द' सुन्दर सामाजिक रचना है जिसमें एक कृपण व्यक्ति का प्रच्छा चित्र प्रस्तुत किया गया है । इसके अतिरिक्त उस समय की प्रचलित सामाजिक रीति रिवाज, जैसे सामूहिक ज्योनार, यात्रा संघ निकालना प्रादि का वर्णन उपलब्ध होता है । राजनैतिक दृष्टि से 'पारसनाथ सकुन सत्तावीसो' का नाम लिया जा लकता है जिसमें मुस्लिम आक्रमण के समय होने वाली भगइ, अशान्ति का वर्णन है । साथ ही ऐसे समय में भी जिनेन्द्र भक्ति से ही अशान्ति निवारण की कल्पना ही नहीं प्रपितु उसी का सहारा लिया जाता था इसका भी उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में श्री महावीर प्रन्ध प्रकादमी का विशेषतः उसके संरक्षक, अध्यक्ष, उपाध्यक्षों तथा सभी माननीय सदस्यों का मैं पूर्ण आभारी है जिनके सहयोग के कारण ही हम प्रकाशन योजना में प्रागे बढ़ सके हैं। हिन्दी जैन कवियों के मूल्यांकन एवं उनकी मूल रचनाओं के प्रकाशन का यह प्रथम योजनाबद्ध प्रयास है। प्राशा है समाज के सभी महानुभावों की शुभकामनारों एवं भागीर्वाद से इसमें हम सफल होंगे। मैं सम्पादक मण्डल के सभी तीनों विधान सम्पादकों-आदरणीय डा० ज्योतिप्रसाद जी जैन लखनक, ब्वा० दरबारीलाल जी सा० कोटिया वाराणसी एवं पं० मिलाप चन्द जी मा. शास्त्री जयपुर का, उनके पूर्ण सहयोग के लिए प्राभारी है। डा. कोठिया सा. तो प्रकादमी की सचालन समिति के भी माननीय सदस्य हैं।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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